भोजपुरी माटी के पितामह भिखारी ठाकुर जिनकर आज जन्मदिन ह

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कुछ तहार हस्ती अइसन, कुछ तहार नाम अइसन

झुक जाए जेकर आगे, कुछ तहार काम अइसन।

आज हम रऊआ सबके एगो अइसन शख्सियत के बारें में बतावे जा रहल बानी, जिनकर नाम से अगर रऊआ पहले से मुखातिब बानी त खुदही इनका झुकके नमन करम। अऊर नाहीं त जनला के बाद आज रऊआ हमरा के शुक्रिया जरुर कहम। जी हां हम बात कर रहल बानी भिखारी ठाकुर के, जिनकर आज जन्मदिन ह।

रुपया गिनाई लिहला,पगहा धराई दिहला,
चिरिया के छेरिया बनवलअ हो बाबूजी
ख़ुशी से होता विदाई,पत्थर छाती कइलस माई,
दुधवा पियाईल विसरईलीं हो बाबूजी
कहता भिखारी नाई,घर,कुटुंब पूरा गाई
फेर मत करिहअ अइसन काम मोरे बाबूजी
रुपया गिनाई लिहला,पगहा धराई दिहला,
चिरिया के छेरिया बनवलअ हो बाबूजी

Bhikhari Thakurइ भिखारी ठाकुर के लिखल ऊ दर्दभरल अमर गीत के चंद पंक्तियां बा, जेकरा मंच पे से सुनला के बादे लइकी,औरतन के संगे-संगे आदमीयन के भी रोआई बंद ना होखत रहे। पूरा माहौल गमगीन हो जात रहे। इ गीत के सुनके ढेर माई-बाप जागरूक भइलें अऊर बेटी बेचे के शर्मनाक प्रथा कुछ कम भईल।

खैर इ मार्मिक घटना त मात्र एगो कविता के बा, एकरा अलावा भी भिखारी ठाकुर अइसन कईक कविता लिखलें जवन लोगों के कबों आँख नम कइलस त कबों  सच के आइना दिखवलस।

भिखारी ठाकुर आपन काम से नाम त कमवलन पर जवन कमाईल चाहत रहन उ आखरी सांस ले पूरा ना भईल। उनका खातिर नाम से ऊपर उनकर सम्मान बहुत अहम रहे, बाकी नीची जात के होखे के चलते उनका उ कबो ना मिलल।

कहल जाला कि लेखक पर जब कुछ बितेला त, ओकर लेखन में ओह दुख के झलक जरूर मिलेला। भिखारी ठाकुर के रचना जीवन के सम्मान के संर्घषमयी लड़ाई के आइना बा। नाम से सम्बोधन पावे के हर कोई के जीवंत अधिकार होला। बाकी भिखारी ठाकुर के आपन नाम के आगे श्री अऊर श्रीमान के सम्बोधन कबो ना मिलल अऊर जवन सम्बोधन मिलल उ रहे, ‘रे भिखारिया’जेकर जिक्र उ आपन नाटक के माध्यम से कईले बाड़न।

Bhikhari Thakurभिखारी ठाकुर के जनम 18 दिसम्बर 1887 में बिहार के सारन जिला के कुतुबपुर (दियारा) गाँव में एगो नाई परिवार में भईल रहे। उनकर पिताजी के नाम दल सिंगार ठाकुर अऊर माताजी के नाम शिवकली देवी रहे। उनकर जीवन बच्चपन से ही संघर्षमय रहल। आपन पढ़ाई खातीर उ घरहीं नाई के आपन पारिवारिक काम करके पढ़े लिखे सीखलें।

भिखारी ठाकुर के गीत अउर कविता भारत में महिला लोग के दशा, दिशा प आधारित रहे। उनकर हर कविता, हर गीत आज भी ओतने लोकप्रिय बा,जेतना तब रहे।

ओ ऽ ऽ ऽ ऽ
हँसि हँसि पनवा खियवले बेइमनवा
हँसि हँसि पनवा खियवले बेइमनवा
कि अपना बसे रे परदेस
कोरी रे चुनरिया में दगिया लगाइ गइले
मारी रे करेजवा में तीर
हे ऽ ऽ ऽ ऽ दोहाई हऽ दोहाई हऽ

भोजपुरी फिल्म “विदेशिया” के इ विरह गीत बिहार रत्न से सम्मानित स्वर्गीय भिखारी ठाकुर के उ अमर गीत ह, जवन आजले लोकप्रिय ह।

महान लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के ‘भोजपुरी के शेक्सपीयर’ अउर पितामाह भी कहल जाला।

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