चिल्ड्रेन्स डे पहिला प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के नामे काहे ?

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14 नवम्बर देश के पहिला प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू (चाचा नेहरू )के जन्मदिन होला. ई दिन भारत में “बाल दिवस”  के रूप में मनावल जाला. दिल्ली में त आबोहवा में घुलल जहरीला धुआं स्कूल बंद करा देहलस. एकोगो  छोट बच्चा एह खास दिन पर स्कूल ना पहुँच पावल. अलबत्ता देश भर में बच्चा लोग के डांस, कविता, भाषण, गाना, खेलकूद जईसन रंगारंग कार्यक्रम के दौर दिन भर चलल.

नेहरु जी
नेहरु जी

एह खास दिन हर साल के तरह एह साल भी सरकारी रस्म अदायगी आउर समापन करके घर वापसी भइल. अगला दिन फेरु पुराना ढर्रा पर वापसी? उहे सिलेबस, भारी बस्ता के मासूम कंधा पर बोझ, मां-बाप के सपना के ताबीर, हमेशा अव्वल रहे के बोझ लदले बच्चा सब अपना बचपन से बहुत दूर एगो बिना जिंदगी वाला दौड़ में शामिल दिखाई दिहें? लेकिन होखे के त कुछ अईसन चाहीं कि बचपन के एह खूबसूरत अवस्था में बच्चा लोग के आंख में उनकर खुद के देखल सपना होखे, उनकर आपन कल्पनाशक्ति होखे, उनकर आपन जीवन संगीत होखे, आपन एगो शैली होखे, आपन बनावल दोस्त होखे, अपने एगो दुनिया होखे. एगो अइसन दुनिया, जहां उ सब अपना मर्जी से खेलत-खात, पढ़ाई करत आउर दुनिया के आउर खूबसूरत बनावे के आपन तरीका खुद से निकाले, लेकिन लईकन के जिंदगी से इ सब गायब बा.

खास बात इ बा कि बचपन के सहेजे, संवारे आउर ख्वाब के उड़न खटोला पर बैठाके आसमान के बुलंदी पर पहुँचावे के  जिम्मेदारी जवने कंधां पर बा, उहे बचपन के कातिल बन बईठल बा आउर बचपन गायब करे के अपराध में शामिल बा?  चाहे उ माता-पिता होखे, शिक्षक होखे, बस्ता के बोझ मतलब हमनी के शिक्षा व्यवस्था होखे, चाहे समाज के  लचर राजनैतिक व्यवस्था, जहंवा बच्चा लोग के वर्तमान के फिक्र से ज्यादा भविष्य के उम्मीद हावी बा. हमनीं के ध्यान देवे के पड़ी कि बच्चा सब हमनीं के ओह एजेंडा में शामिल ना होखे .
एक ओर स्कूल मैनेजमेंट अपना फायदे के देख एह नन्हा कंधा पर बस्ता के बोझ बढ़ावता. ओहीजा दूसरा ओर एह बच्चा लोग के जल्दी से जल्दी गाना, डांस, ड्राइंग, तैराकी… सब कुछ सिखा देवे के आउर सब कुछ पा लेवे के अभिभावक के ख्वाहिश बच्चा के रचनात्मक मस्तिष्क पर दबाव डाल रहल बा. मां-बाप बच्चा के खड़ा होखे, चलेके सिखवले के उम्र में ओके स्कूल में बईठल सिखावल पसंद करे लागल बा. हमनी सब आत्मकेन्द्रित लोग अपना बच्चा के दोस्त भी चुने  के अधिकार अपना पास रखे लागल बानी जा . अपना बच्चा के दुनिया के अथाह समंदर में डुबकी लगावे के जगह हमनी के किनारे पर खड़ा होके बिना भीगल पानी के आनंद लेवे के कह रहल बानी जा . एगो कमरा में सुविधा उपलब्ध करावे के फेर में हमनी के जवने समय पर बच्चा के अधिकार रहे उ छिन लेहनी जा ? हमनी के बस मैरिट में आवे वाला बच्चा चाहीं. मोबाइल, गाड़ी ओकरे हाथ में थमाके आपन आर्थिक स्तर प्रदर्शित करे के होड़ में ओकर बचपन छीन रहल बानी जा .

अभिभावक लोग के लइकन के ना सुनेके भी आवेके चाहीं, लेकिन हमनीं के आपन बच्चा के ना सुने के नाहीं चाह तानी. हमनीं के  कुछ पावे खातीर लइकन के कईल गईल प्रयास के खत्म कर ओकर जद्दोजहद के प्रवृति के खत्म कर रहल बानी जा , जवन बचपन जीये के एगो सहज तरीका बा.

बच्चा कवनो भी सियासी दल के वोट बैंक नाहीं होला , एहिसे कवनो सरकार के राजनैतिक दल के प्राथमिकता में बच्चा शुमार नाहीं होलें. एहिसे उ शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल-कूद, अवसर के उपलब्धता में पिछड़ जाला . पूरा देश के लइकन के कुपोषण अपना चपेट में ले रहल बा, लेकिन केहू के फिक्र नाहीं बा. भारत में  कुपोषण से पैदा बीमारी के वजह से हर साल लाखन बच्चा के मौत हो जाला. 5 साल से कम उम्र के बच्चा के इ संख्या त हर साल 10 लाख से ऊपर बा.

देश में लइकन के खिलाफ आपराधिक आउर यौन शोषण के मामला लगातार बढ़त जाता. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ओर से 2016 में जारी कईल अपराध पर आधारित आखिरी रिपोर्ट कहता कि लइकन के साथ अपराध के दर 24 फीसदी तक पहुंच गईल बा. मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा बच्चन के साथ रेप केस दर्ज भईल. मध्य प्रदेश (2,467) के बाद महाराष्ट्र (2,292) आउर उत्तर प्रदेश (2,115)  दुगो अन्य सबसे बदनाम राज्य बा.

बच्चन के साथे शारीरिक  दुर्व्यवहार के बात कईल जाव त उत्तर प्रदेश 2,652 मामला के साथ सबसे आगे बा. एकरे बाद महाराष्ट्र (2,370) आउर मध्य प्रदेश (2,106) शर्म से सिर झुकावले खड़ा बा. पोर्नोग्राफी, सेक्सुअल हैरासमेंट के लगातार बढ़ रहल घटना बचपन के सपना धूल-धूसरित करके निराशा के सागर में गोता लगावेके छोड़ रहल बा.

अईसन लागता जइसे सिस्टम, सियासत, सत्ता , परिवार से लेके सब बचपन के खिलाफ खड़ा हो गईल बा, एह माहौल  में नेहरू के सपना के भारत कईसे  बनी, जहंवा हर बचपन के उन्मुक्त जिये के अवसर मिल सको.

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