judsheetal – Gahana Live https://www.gahanalive.com Gahana Mon, 13 Apr 2020 11:59:26 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.4 महापर्व सतुआनी आज, काल्ह जूड़ शीतल https://www.gahanalive.com/vrat-tyohar/bihar-festival-satuaani-3665 https://www.gahanalive.com/vrat-tyohar/bihar-festival-satuaani-3665#respond Mon, 13 Apr 2020 11:58:43 +0000 https://www.gahanalive.com/?p=3665 आज सउंसे पूर्वांचल में सतुआनी के पर्व मनावल जा रलह बा. आजू के दिन भोजपुरिया लोग सतुआ अउरी आम के टिकोरा के चटनी खाला. साथे-साथ कच्चा पियाज, हरिहर मरिचा आ अचार भी रहेला. आखिर का ह ई सतुआन? काहे मनावल जाला? एह बाबत पंडित मुक्तेश्वरनाथ शास्त्री बतवनीं कि सतुआन त्योहार भगवान सूर्य के मीन से […]

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आज सउंसे पूर्वांचल में सतुआनी के पर्व मनावल जा रलह बा. आजू के दिन भोजपुरिया लोग सतुआ अउरी आम के टिकोरा के चटनी खाला. साथे-साथ कच्चा पियाज, हरिहर मरिचा आ अचार भी रहेला. आखिर का ह ई सतुआन? काहे मनावल जाला?

एह बाबत पंडित मुक्तेश्वरनाथ शास्त्री बतवनीं कि सतुआन त्योहार भगवान सूर्य के मीन से मेष राशि में प्रवेश करे के उपलक्ष्य में मनावे के परंपरा ह। दरअसल सतुआन भोजपुरी संस्कृति के काल बोधक पर्व ह। हिन्दू पतरा में सौर मास के हिसाब से सुरूज जहिआ कर्क रेखा से दखिन के ओर जाले तहिये ई पर्व मनावल जाला। एहि दिन से खरमास के भी समाप्ति मान लिहल जाला। हालांकि, आचार्य लोग कोरोना संक्रमण के खतरा अउरी लॉकडाउन के देखत श्रद्धालु लोग से घर में स्नान कर के दान-पुण्य के विधान करे के कहल ह। ईहो मान्यता बा कि जब सूर्य मीन राशि के त्याग कs के मेष राशि में प्रवेश करेलन त ई पुण्यकाल में सूर्य अउरी चंद्र के किरण से अमृतधारा के वर्षा होला, जे आरोग्य वर्धक होला। एही से आज बसिया खाना खाए के भी मान्यता बा। सतुआनी में दाल से बनल सत्तू खाए के परंपरा होला।
ई पर्व कई मायना में महत्वपूर्ण होला। आज के दिन लोग गंगा स्नान कर के मिट्टी चाहे पीतल के घड़ा में आम के पल्लो स्थापित करेला। सत्तू, गुड़ अउरी चीनी आदि से पूजा कईल जाला। एही दौरान सोना अउरी चाँदी आदि दान देवे के भी परंपरा बा। पूजा के उपरांत लोग सत्तू अउरी आम के प्रसाद के रूप में ग्रहण करेला। एतने ना, जौ के सत्तू, गुड़, कच्चा आम के टिकोरा आदि गरीब असहाय के दान कइल जाला आ ईस्ट देवता, ब्रह्मबाबा आदि के चढ़ा के प्रसाद के रूप में ग्रहण कइल जाला।एह पर्व में ऋतु फल के साथ सत्तू, पंखा, जल, कुम्भादि दान करे के महत्व होला। ई काल बोधक पर्व संस्कृति के सचेतना, मानव जीवन के उल्लास आ सामाजिक प्रेम प्रदान करेला।
आज के मैगी पीढ़ी के ई जानके आश्चर्य होई, कि सतुआ गूँथे में मिनटों ना लागेला अउरी ना ही आग पर पकावे के जरूरत होला ना बर्तन के आवश्यकता। रउआ सात गो भुनल अनाज के आटा से बनल सतुआ के घोल के पी भी सकेनीं, अउरी गुंथ के खा भी सकेनीं , गमछा बिछा के पानी डाल के, तनी नमक मिला के तुरंत तैयार कईल जा सकेला।
एह त्योहार के मनावे के पीछे के वैज्ञानिक कारण भी बा. इ खाली एगो परंपरे भर नइखे. असल में जब गर्मी बढ़ जाला, आ लू चले लागेला तऽ इंसान के शरीर से पानी लगातार पसीना बन के निकले लागेला, तऽ इंसान के थकान होखे लागे ला। अइसन में सतुआ खइले से शरीर में पानी के कमी ना होखेला. अतने ना सतुआ शरीर के कई प्रकार के रोग में भी कारगर होखेला.
पाचन शक्ति के कमजोरी में जौ के सतुआ लाभदायक होखेला. कुल मिला के अगर इ कहल जाए कि सतुआ एगो संपूर्ण, उपयोगी, सर्वप्रिय आ सस्ता भोजन हऽ जेकरा के अमीर-गरीब, राजा-रंक, बुढ़- पुरनिया, बाल-बच्चा सभे चाव से खाला. असली सतुआ जौ के ही होखेला बाकि केराई, मकई, मटर, चना, तीसी, खेसारी, आ रहर मिलावे से एकर स्वाद आ गुणवत्ता दूनो बढ़ जाला.
एकरा एक दिन बाद जूड़ शीतल के त्योहार मनावल जाई. एमे पेड़ में बासी जल डाले के परंपरा होला। जुड़ शीतल के त्योहार बिहार में हर्षोलास के साथ मनावल जाला.
पर्व के एक दिन पूर्व मिट्टी के घड़ा या शंख जल ढंककर रखल जाला, फेरु जुड़ शीतल के दिन भोरे उठके पूरा घर में जल जे छींटा देहल जाला । मान्यता बा कि बासी जल के छींटा से पूरा घर अउरी आंगन शुद्ध हो जाला।
त आज रउओ सतुआन मनाईं। सतुआ खाईं अउरी पूरा परिवार के खियाईं।

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