दिवाली के दिन बा बहुते खास, देवता मनावले दिवाली

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गंगा के किनारे अर्धचंद्राकार घाट प झिलमिलात असंख्य दिया, आकर्षक आतिशबाजी, घंटा-शंख के गूंज अउर आस्था-विश्वास से लबरेज देव-दीपावली काशी के सबसे खास दीपावली ह।

ऋतुअन में श्रेष्ठ शरद ऋतु, मासन में श्रेष्ठ कार्तिक मास, अउर तिथियन में श्रेष्ठ पूर्णमासी के शंकर के नगरी काशी के गंगा घाट पर दीपक कुछ अइसन सजेला जइसे माना गंगा के राहे देवन के टोली आ रहल बा, अउर उनके स्वागत खातीर 84 घाटन पर दिया जगमगात रहेला।

मान्यता बा कि एह तिथि के भगवान भोलेनाथ त्रिपुर नाव के दैत्य के वध कइले रहले अउर आपन हाथ से बसावल काशी के अहंकारी राजा दिवोदास के अहंकार के नष्ट कइले रहल। राक्षस के मरला के बाद देवता लोग स्वर्ग से लेके काशी तक दिया जलाके खुशी मनवले रहन… तबे से काशी घाट पर दिप जलाके इ पर्व के देव-दीपावली के रूप में मनावल जाला।

इ परंपरा के आज भी निभावल जाला। कहल जाला कि एह माह में स्नान, दान, होम, योग, उपासना आदि कइला से अनंत फल मिलेला।

धनतेरस के दिन से यमराज के नाम के भी एगो दीया लगावल जाला। ई दीप घर के मुख्य द्वार पर लगावल जाला ताकि घर में मृत्यु के प्रवेश न हो।

संपूर्ण मध्यभारत में पहला दिन नरक चतुर्दशी श्रीकृष्ण से जुड़ाल बा, दूसरा दिन देवता कुबेर आऊर भगवान धन्वंतरि से जुड़ाल बा। तीसरा दिन माता लक्ष्मी आउर अयोध्या में राम के वापसी से जुड़ाल बा। चौथा दिन गोवर्धन पूजा अर्थात श्रीकृष्ण से जुड़ाल बा। त उहवे  5वां दिन भाई दूज के ह।

मध्यभारत में रंगोली के जगह मांडना बनावे के परंपरा प्रचलित ह। हालांकि रंगोली भी बनवल जाला लेकिन मांडना बहुते शुभ मानल जाला। दशहरा के बाद से एह त्योहार के तैयारी शुरू हो जाला। घर के साफ-सफाई, छबाई-पुताई के साथ ही घर के सब समान धो-पोंछके साफ-सुथरा कईल जाला। खराब चीज कबाड़ि के बेच दिहल जाला। घर के पूरा सजावट के बाद नया सिरा से घर में समान जमावल जाला जैसे कि नया जीवन शुरू कईल जा रहल बा। बाजार रंग-पेंट, फुलझड़ी-पटाखा, मोरपंख, दीया, लक्ष्मी के मूर्ति आदि सजावट के सामान आउर खाये-पीये के समान से सज जाला।

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