गया में पिंडदान, पितरों खातिर स्वर्गारोहण के सीढ़ी

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पूर्वज लोग के आत्मा के शांति अउर मुक्ति खातिर एक पखवारा तक चले वाला पितृपक्ष में श्राद्ध करे के परंपरा बहुत पुरान ह. अइसे त पिंडदान अउर तर्पण खातिर देश में कईठे स्थान बा, बाकी ओमे बिहार के सबसे श्रेष्ठ मानल गइल बा. पितृपक्ष के शुरु होखते गयाजी के फल्गु नदी तटे हजारों श्रद्धालु आपन पूर्वज के शांति खातिर पिंडदान अउर प्रार्थना करेलें.

पितरों के मुक्ति खातिर गया के पहिला  मुख्यद्वार कहल जाला. एही से एहिजा पिंडदान के विशेष महत्व बा. हिंदू धरम में पितृपक्ष के शुभ काम खातिर वर्जित मानल गइल बा. ऐही से मान्यता ह कि पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म कर पिंडदान अउर तर्पण करे से पूर्वज लोग के सोलह पीढ़ी तक के आत्मा के शांति अउर मुक्ति मिल जाला. एह मौका प करल श्राद्ध पितृऋण से भी मुक्ति दिलावेला.

 

एगो प्रचलित कथा ह कि, भस्मासुर के वंशज में गयासुर नाम के राक्षस रहे. जवन कठिन तपस्या से ब्रह्मा जी से वरदान मंगले रहे कि ओकर शरीर देवतन जइसन पवित्र हो जाए अउर लोग ओकर दर्शन कइला मात्र से पाप मुक्त हो जास. इ वरदान मिलला के बाद स्वर्ग के जनसंख्या बढ़े लागल अउर सबकुछ प्राकृतिक नियम के उल्टा होखे लागल. लोग बिना भय के पाप करे लगेलें अउर गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त होखे लगलें.

इ सबसे बचे खातिर देवता लोग गयासुर से यज्ञ खातिर पवित्र स्थल के मांग कइलें. गयासुर आपन शरीर देवता लोग के यज्ञ खातिर दे दिहलस. जब ग्यासुर धरती प लेटल त  ओहकर शरीर पांच कोस में फैल गइल अउर एह जगह के नाम पड़ गया. बाकी गयासुर के मन से लोगन के पाप मुक्त करे के इच्छा ना गईल अउर एही से उ फिर देवता लोग से वरदान मांगलस कि इ जगह लोगन के तारे वाला बन  जाओ. लोग इहां केकरों मुक्ति के इच्छा से पिंडदान करस त ओहके मुक्ति मिल जाओ.

एही कारण ह कि आज भी लोग आपन पितरों के तारे खातिर गयाजी में पिंडदान करे आवेलें. इहवां के वेदी प विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे अउर अक्षयवट प पिंडदान करल जरूरी मानल जाला.

फल्गु नदी के जल के महत्व एतना ज्यादा ह कि मानल जाला कि नदी में पांव पड़ला से जवन पानी के छिंटा उड़ेला उ पानी मात्र से पूर्वज लोगन के आत्मा के मुक्ति मिल जाला। पूर्वज लोग के आत्मा इ छिंटा के भी पवित्र मानके के ग्रहण क लेला।

पितरों के आत्मा के जब ले मोक्ष ना मिलेला तब ले ओहन लोग के आत्मा भटकत रहेला। जेकरा से ओहन लोग के बाल-बच्चा लोग के जीवन में भी बाधा आवेला। एहीसे गयाजी आके पितर लोगन के पिंडदान जरुर करे के चाही।

देश भर में श्राद्ध खातिर हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर, बद्रीनाथ अउर कई जगह के महत्वपूर्ण मानल गइल बा, बाकि गया के स्थान ओहमे सबले ऊपर बा.  गरुड़ पुराण में कहल गइल बा कि गया जाए खातिर घर से निकालल हर एक कदम पितरों खातिर स्वर्गा के एक-एक सीढ़ी बनावेला.

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