Bhojpuri – माटी के लाल (Bhojpuri Personalities) – Gahana Live https://www.gahanalive.com Gahana Thu, 23 Apr 2020 15:29:33 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.4 बीर कुँवर सिंह आ 1857 के स्वाधीनता संग्राम https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/veer-kunwar-singh-3733 https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/veer-kunwar-singh-3733#respond Thu, 23 Apr 2020 15:27:48 +0000 https://www.gahanalive.com/?p=3733 “बीर बाँकुरा बाबू कुँवर सिंह आ सन् 1857 के भारतीय स्वाधीनता संग्राम” भोजपुर का पानी, बानी आ बीरन का जवानी-रवानी के जहान जानेला आ लो हा मानेला। एकरा के अनसोहातो रत्नगर्भा आ बीरप्रसूता ना कहल जाए। कवि चंचरिक बेजाँय नइखन कहले- ” कन-कन में जेकरा क्रांतिबीज भोजपुर अइसन ठप्पा हमार इतिहास कहे पन्ना पसार।” एही […]

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“बीर बाँकुरा बाबू कुँवर सिंह आ सन् 1857 के भारतीय स्वाधीनता संग्राम”
भोजपुर का पानी, बानी आ बीरन का जवानी-रवानी के जहान जानेला आ लो हा मानेला। एकरा के अनसोहातो रत्नगर्भा आ बीरप्रसूता ना कहल जाए। कवि चंचरिक बेजाँय नइखन कहले-
” कन-कन में जेकरा क्रांतिबीज
भोजपुर अइसन ठप्पा हमार
इतिहास कहे पन्ना पसार।”
एही वैदिक भोजकट्ट (भोजखंड)का वैदिक भोजगन के बीरता आ दानबीरता के चर्चा विश्वामित्र इन्द्र से आ महाभारतकालीन भोज परिवारन के चर्चा कृष्ण राजसूय जग में युधिष्ठिर से कर चुकल बारन। पुष्यमित्र एही माटी पर ग्रीक बिजेता मीनांदर के भुभुन भसकवले रहस। चन्द्रगुप्त अपना सेना के हिन्दूकुश तक हाँक के हथियवले रहस। जिनका से भयाके सिकन्दर ब्यासे नदी तर से भाग पराइल रहे आ ओकर सेनापति सेलुकस चन्द्रगुप्त के आपन बेटी देके जान छोड़वले रहे आ उल्टे पाँव यूनान भाग गइल रहे। उनका विजय के प्रतीक लौहखंभा आजुओ महरौली (दिल्ली) में गड़ल बा। शक आ कुषानन के दस-दस बेर गर्दा झाड़के भोजपुरिया बीर दस गो अश्वमेध जग कइले रहलें। कासी के दसाश्वमेध घाट एकरे गवाही देला। स्कन्दगुप्त एही भोजपुरिया जवानन का जोर पर हुनन के हूँक- हूँक के हुलिया बिगाड़ देले रहस। एकर एगो छोट सरदार सेरसाह दिल्ली का किला के हिला के हुमाँयु के परान लेके इरान भागे खातिर मजबूर कर देले रहे। सेरसाह के असामयिक मरन ना भइल रहित त भारत में मुगलन के नावो निसान ना रहित। सन् 1765 ई. में हुसेपुर गोपालगंज के राजा फतेह बहादुर शाही के डरे वारेन हेस्टिंग अइसन हड़बड़ाके भागल रहे कि भागत घरी ऊ कभी घोड़ा पर हउदा बान्हे त कभी हाथी पर जीन कसे। आजुओ भोजपुर में कहाला – गवाला –
“घोड़ा पर हउदा,हाथी पर जीन
भागल चुनार ला वारेन हेस्टिंग”
बागी बलिया के मंगल पाण्डेय,आगी आरा के बाबू कुँवर सिंह आ बीरभूमि बनारस के बेटी लछमीबाई (मनिकनिका) के परतोख ना दुनिया से दियाइल बा आ ना आगे दियाई। एही बेसानी जवानी आ पानी-रवानी के देख के भानु जी का कंठ से उचरल रहे
– ” होला एक पानी के मरद भोजपुरिया । ”
रउरा नइखीं जनले-सुनले त जानीं-सुनीं । आज हमहूँ जनाइये-बताइये देवे के चाहत बानी आ एकरा खातिर बानगी के रूप में भोजपुर के एगो टहकार जोत , चिर युवा, पराक्रम आ पौरुष के परतोख, यूद्धप्रियता आ दानबीरता के अजगूत नमूना सन् 1857 का स्वाधीनता संग्राम के ध्वजावाहक , महानायक आ पराक्रमी पुरोधा बीर बाँकुरा बाबू कुँवर सिंह का क्रांतिकारी व्यक्तित्व आ कृतित्व के थनगे-थनगे परोस रहल बानी।
आज जब देस आ देसी समाज के अपना-अपना क्षुद्र स्वार्थ खातिर छोट-छोट खाना में बाँट के अपना के सेसर आ बकिहा के अध्भेसर बतावे-जनावे का हिसाब से चिंगुरी पर ठार होके एंड़ी अलगावे के बेपरमान दौर चल रहल बा, ऊ एक दिन में नइखे तइयार भइल । एकर जमीन पहिले निजी लोभ-लाभ ला अपना इतिहासकारन के जरिये मुगल आ अँगरेज तइयार कइलें स आ बाद में ओकरे अनुयायी कुछ खास व्यक्ति आ परिवार । ताकि आगे के पीढ़ी ई जाने जे सबकुछ एही सभन के अरजल ह। आजादियो मिलला के बाद कुछ एही तरह से इतिहास लिखवावल आ पढ़वावल गइल। जहाँ तक सन् 1857 का स्वाधीनता संग्राम के बात बा त तब के अँगरेजी सरकार के चापलूस अँगरेज आ उनका बातन के उल्था क के दोहरावे वाला भारतीय इतिहासकार जोर-सोर से प्रचार कइलें कि ऊ महज सिपाही बिद्रोह रहे। कुछ लिखलें जे ऊ त तब के नरेस आ नबाब आपन-आपन राज बचावे खातिर गदर कइले रहस। जाति आ उपजाति का खाना में देस के बाँट के आपन-आपन उल्लू सीधा करेवाली वोट हसोथी राजनीति के सौदागर एही सोच आ विचारधारा के हवा दे रहल बा। मंगल पाण्डेय, कुँवर सिंह, लछमी बाई, हजरत महल, तात्या टोपे का संगे-संगे आगे चल के सावरकर, लाला लाजपत राय, आजाद, भगत सिंह, सुभास वगैरह खातिर अइसने बात प्रचारित करावे के असफल उतजोग कइल गइल। एह सब में बाबू कुँवर सिंह का योग्यता आ योगदान के साथे कुछ जादहीं जातती भइल। एक बेर भारत सरकार ‘ प्रथम स्वाधीनता संग्राम, 1857 ‘ नाम से 60 पइसा के डाक टिकट जारी कइले रहे त ओकरा में वीर कुँवर सिंह के छोड़ के रानी लछमी बाई, बेगम हजरत महल, तात्या टोपे , मंगल पाण्डेय आ नाना साहेब के नाम रहे। जदि बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, नेपाल आदि के लोक मानस अपना खेल के बोल, लोक गीत, गाथा, कथा, नाटक वगैरह में कुँवर सिंह का नाम- जस के ना बचवले रहित त पूर्वाग्रही चापलूस इतिहासकार लोग त वारा-न्यारा कइये देले रहे। लइकाईं में कबड्डी के बोल सुनले रहीं-
“चल कबड्डी आरा!
संतावन गोली मारा!
मारा मारा मारा —-”
चिक्का खेले में लोग बाले-
” बाँस के फराठी,
बाबू कुँवर सिंह के लाठी
झनाझन तरुआर,
झनाझन तरुआर।”
फगुआ में गवाये-
” बंगला में उड़ेला गुलाल,आहो लाला बंगला में उड़ेला गुलाल
बाबू,आरे कुँवर सिंह तेगवाबहादूर
बंगला में उड़ेला अबीर।
इत से आवे घेर फिरंगी
उत से कुँवर दूनू भाई,आरे गोला बारूद के बने पिचकारी।
बीचवे में होत लड़ाई।
आरे बाबू कुँवर सिंह तेगवा–”
चइता के ताल ठोकाए-
“ए रामा– बाबू आहे बाबू
आहे बाबू होकुँवर सिंह
गदर मचावे ए रामा गँवा-गाँई
गँवा -गाँवा नेवता पेठावे
ए रामा गँवा-गाँईं।।”
——————————-
कुँवर के लड़इया हो रामा
कुँवर के लड़इया हो।
कुँवर के लड़इया लड़े जाइब
हो रामा, आरा नगरिया।।”
बिरहा में सुनाए-
” बबुआ ओहि दिन दादा लेलें
तरुअरिया हो ना।
बबुआ धनवा धरम अवरु गइया हो ना।
बबुआ बिधवा वो राँड़ि के बिपतिया हो ना।
बबुआ भाई आ बहिन के इजतिया हो ना।
बबुआ बाप अवरु दादा के किरितिया हो ना।
बबुआ ओहि दिन दादा लेलें तरुअरिया हो ना।
बबुआ मरलें मराठा जुझे सिखवा हो ना।
बबुआ पेसवा के पूतवा गुलमवा हो ना।
बबुआ दिल्लीपति भइलें कंगलवा
हो ना।
बबुआ ओहि दिन —– तरुअरिया हो ना।।
—————————————-
बबुआ असी हो बरीस के उमिरिया हो ना।
बबुआ थर थर काँपे जेकर मुड़िया हो ना।
बबुआ बकुला के पाँख अस केसिया हो ना।
बबुआ गिरी गइली जाहि दिन बतीसिया हो ना।
बबुआ ओहि दिन — तरुअरिया हो ना।”
कहीं पचरा सुनाए-
” धन भोजपुर धन भोजपुरिया पानी।
असियो बरिस में जहाँ आवेला जवानी।
जेकर असी बरिस में लवटल बा जवनियाँ
कहनियाँ बाबू कुँवर के सुनीं।”
धोबी-नाच में लोग झूम झूम के गावे –
“बाबू कुँवर सिंह पछिम के जब पेयान कइनीं।
पावना में डेरा गिरवनीं ना।
लोहा के जामा सियवनीं
बाँयाबंद लगवनीं ना।
ढ़ाल तरुआर के कवन ठेकाना
गोला बारुद संग धवनीं ना।”
पँवरिया लोग गावत मिले –
“भरल भोजपुर में कुँवर बिरजलें
रीवाँ रहल सरनिया नूँ।
हाट बाजार कवन बिराजे
के के कहल सब गुनवा नूँ।
——————————–
सबे बिसेन घर घुसी लुकइलें
बाबू पड़लें अकेले नूँ।।”
नदी में नाव खेवत मल्लाह लोग अलाप लेवे –
“घोड़वा चढ़ल जब चललन कुँवर सिंह, धरती पर मचेला कुलेल।
मोंछी के उठान देखि ताना मारे घोड़वा, खेलेला जवनिया गुलेल।।
जबहीं कुँवर सिंह खिंचलें लगमिया,घोड़ा उड़ी चलल आकास।
फर फर उड़ेला केसरिया पतखवा
झन झन बाजे तरुआर।।”
अइसहीं कजरी, लाचारी , पचरा वगैरह में लोक मानस अपना लोकनायक आ लोक खातिर असी बरिस के उमिर में सब सुख-सुबिधा तेयाग के जूझे वाला जोद्धा के जिया के राखल, जवन बाद के लोकवादी आ देसपरस्त इतिहासकार, साहित्यकार आदि के एह दिसा में सही तथ्य के खोज खबर लेके लिखे आ सरकार के उनका वंश परम्परा आ भारतीय स्वाधीनता संग्राम में उनका योगदान के लेके अनुसंधान के काम करे-करावे खातिर बाध्य कइलस।
लोक मानस के अपना लोकनायक के प्रति सरधा आ समर्पण से प्रेरित होके बाबू साहेब का कुल-खान्दान , जीवन-वृत आ देस के प्रति योगदान के खोज होखे लागल। बोधराज के हिन्दी पांडुलिपि ‘तारीख-ए-उज्जैनिया’, 18वीं सदी के लिखाइल चन्द्रमौलि मिश्र के ‘उदवन्त प्रकाश’, 19वीं सदी में लिखाइल रामकवि के ‘ कुँवर विलास’, बाबू साहेब के संगे लड़ेवाला उनकर दरबारी कवि तोफा राय के ‘कुँवर गाथा’ के अलावे अँगरेजी काल का अभिलेखन के हिंराये-मथाये लागल। कुँवर सिंह आ सन्1857 के भारतीय स्वाधीनता संग्राम से जुड़ल तत्कालीन अँगरेज अधिकारी, इतिहासकार सहित कार्ल मार्क्स जइसन विश्वविख्यात विचारकन के दिहल विचार परोसाय लागल।
बीर कुँवर सिंह परमार क्षत्रिय राजपूत रहलें। जेकरा कुल के गौरव गाथा के पँवारा कहल जाला आ गावेवाला के पँवरिया। ऐतिहासिक राजा भोज के कुल में कई सय बरिस बाद भोजराज, जे भोजपुर आवेवाला पहिल व्यक्ति रहस। ई भोजराज बंसज रहलें उदयादित्य के। उदयादित्य के परमार वंश के आदिपुरुष मानल जाला। जे ‘धार’ नगर के पुनरुद्धार कराके आपन राजधानी बनवले रहस। उनका पहिल रानी से जयदेव आ दूसरकी रानी से रणधीर पैदा भइल रहस। जयदेव गुजरात के आ रणधीर धार के राजा भइलें। धाराधीपति रणधीर के कुल में कई पीढ़ी बाद मुकुलदेव आ भोजराज भइलें।
14 वीं सदी के शुरु में दिल्ली के बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी( 1296-1316 ) के बार-बार आक्रमण के चलते दक्खिन के मध्य भारत बरबाद हो गइल रहे, जवना के चलते आजिज आके मुकुलदेव आ भोजराज धार नगर छोड़ के सन् 1305 ई. में रोहतास आ भोजपुर के चेरो राजा मुकुन्द किहाँ अतिथि रूप में आश्रय लेहल लोग। बाद में रोहतास आ भोजपुर एही कुल के अधीन हो गइल। एह कुल के राजा लोग के दिल्ली का संगे लगातार संघर्ष जारी रहल। सतरहवीं सदी के शुरु में एही वंश के नारायण मल्ल के बेटा प्रबल शाही के दू पुत्र मानधाता सिंह आ सुजान सिंह में मानधाता सिंह बक्सर के उत्तराधिकारी भइलें आ सुजान सिंह के आरा, बिहियाँ,पँवार, पीरो आ ननौर परगना के लगभग 300 गाँव मिलल। सुजान सिंह के तीन बेटा उदवन्त सिंह, शुभ सिंह आ बुध सिंह में सबसे जेठ होखे के नाते सन् 1748 ई. में उदवन्त सिंह के जगदीशपुर के गद्दी मिलल। उदवन्त सिंह के चार बेटा गजराज सिंह, उमराँव सिंह , रण सिंह आ दीगा सिंह में गजराज सिंह के गद्दी मिलल। आपसी पारिवारिक कलह से आजिज आके उमराँव सिंह गाजीपुर के मित्र नवाब अब्दुल्ला किहाँ जाके रहे लगलें। उहँवे उमराँव सिंह के पुत्र साहेबजादा सिंह के जनम भइल। गजराज सिंह के नि:संतान पोता भूपनारायण सिंह रण सिंह के पोता ईश्वरी प्रसाद सिंह के गोद लेके गद्दी दे दिहलें। एह पर साहेबजादा सिंह मुकदमा कर दिहलें। साहेबजादा सिंह लड़े-भीड़े वाला गरम मिजाज के आदमी रहलें। पटना जा के ऊ मुकदमा के सिलसिला में मैक्सवेल से मिललें। बात-बात में बहसा-बहसी हो गइल आ ऊ हाकिम मैक्सवेल के नीमन धोवाई कर दिहले। उनकर गिरफ्तारी हो गइल। बाकिर टेकारी के जमीन्दार विक्रमादित्य सिंह आ कुछ आउर जमीन्दारन के जमानतदार बनला पर छूट गइलें। साहेबजादा सिंह के बिआह पंचरत्ना कुँवर से भइल रहे। जिनका से चार पुत्र के प्राप्ति भइल – कुँवर सिंह ,दयाल सिंह , राजपति सिंह आ अमर सिंह। कुँवर सिंह के जनम सन् 1777 ई. में भइल रहे। मुकदमाबाजी के चलते साहेबजादा सिंह आर्थिक तंगी में रहस।एही समय में सन्1800ई. में कुँवर सिंह आ दयाल सिंह के बिआह गया जिला के देवमूँगा के राजा जगतनारायण सिंह के बेटी सकलनाथ कुँवर आ कमलनाथ कुँवर से भइल। बिआह में एतना ना धन-जायदाद मिलल कि आर्थिक संकट टर गइल आ जगत नारायण सिंह के मदद से मुकदमो में जीत हो गइल। साहेबजादा सिंह का जगदीशपुर के गद्दी मिलल। एने कुँवर सिंह मस्त मिजाज आ दानी सुभाव के युवराज रहस। उनका आम आदमी से घुलल-मिलल आ ओकर मदद कइल पसन्द रहे। केहू कमजोर के सतावे त उलझ जास। अँगरेज अफसरो के ना बकसस। साहेबजादा सिंह का एह चलते बड़ा बदनामी झेले के पड़े। एक दिन ऊ आजिज आके कुँवर सिंह के सपरिवार घर से निकाल देले। एही बीच उनका दरभंजन सिंह के रूप में पुत्र के प्राप्ति भइल। सन् 1826 ई. में पिता के मृत्यु के बाद ऊ जगदीशपुर के गद्दी पर बइठलन। उनका पोता वीरभंजन सिंह के बिआह मुँगेर जिला के गिद्धौर राजपरिवार में भइल रहे। काल्पी के लड़ाई में वीरभंजन सिंह के शहीद भइला के बाद ऊ अपना भाई दयाल सिंह के जेठ बेटा रिपुभंजन सिंह के आपन उत्तराधिकारी बना के गद्दी पर बइठवलें।
अबतक के अभिलेखन के आधार पर एह बात के संकेत मिल्अता कि बाबू कुँवर सिंह सन् 1826ई. में गद्दी पर बइठला के बाद से अँगरेजन से लोहा लेवे के तइयारी में लाग गइल रहस। तीर्थाटन के बहाने समान बिचार के राज-रजवाड़ा से सम्पर्क बढ़ावल शुरु कर देले रहस। पटना आ सोनपुर मेला में चोरी-छुपे योजना बनल शुरु हो गइल रहे। सन् 1845-46 ई. में सोनपुर में बनल बिद्रोह के योजना के भनक पटना का अँगरेज अधिकारी के हो गइल रहे। उनका गिरफ्तारी के तइयारी भी हो गइल रहे। बाकिर बिहार आ भोजपुर में बिद्रोह के लमहर अंदेसा के चलते बंगाल सरकार गियफ्तारी पर रोक लगा के उनका पर नजर राखे के ताकीद कइले रहे। बाद में पटना के अधिकारी दोस्ती के बहाने उनका हर गतिविधि पर नजर राखत रहे आ बाबू कुँवर सिंह भी मने-मने एह बात के बूझ के सजग हो गइल रहस।
ई बात सही रहे कि सन् 1757 के पलासी के लड़ाई में अंगरेजन के जीत, सन् 1761 में पानीपत के तिसरकी लड़ाई में मराठा लोग के हार आ सन् 1765 ई. में बक्सर के लड़ाई में अंगरेजन के जीत उन्हन के मनोबल बढ़ा देले रहे। समय आ सत्ता धीरे-धीरे ओकनिये के हाथ में चल गइल रहे। भारतीय राज-रजवाड़ा आ नवाब लोग कमजोर पड़त चल गइल रहे। तबहूँ छोट-बड़ कुल्ह राज-रजवाड़ा आ नवाब लोग गुप्त रूप से संघर्ष के जमीनी तइयारी खातिर एक-दोसरा से कवनो-कवनो रूप में बातचीत करत रहे। देशी राजा, नवाब आ देशप्रेमी जन समुदाय के बीच मेला-ठेला, जग-परोजन, तीर्थाटन-पर्यटन आ सांस्कृतिक-धार्मिक आयोजनन के माध्यम से भा कवनो ना कवनो बहाने संवाद चलत रहे कि एगो तय तिथि आ समय पर पूरहर तइयारी का संगे कुल्ह जगे अंगरेजन पर आक्रमण कइल जाई आ ओह लोग के सोचे-समुझे का पहिले सबकुछ अपना हाथे कर लिआई। एह योजना पर सन् 1845 से बहुते बारीकी से काम आगे बढ़ल जात रहे कि एही बीच बैरकपुर छावनी (बंगाल) के मंगल पाण्डेय वाला घटना घट गइल। ऊ घटना अपरिपक्व अवस्था में क्रांति के चिनगारी सुलगा दिहलस आ कुँवर सिंह, पीर अली, लक्ष्मीबाई आदि जइसन लोग के योजना फेल हो गइल।
अंगरेज इहाँ के राजा आ नवाब लोग के लेके आउर चौकन्ना हो गइलें स। एही उद्देश्य से ऊ इहाँ का लोग के भासा, संस्कृति, साहित्य, परम्परा आ धार्मिक अनुष्ठानन के ऊपर अध्ययन-अनुसंधान करत रह सन। ओकनी का एह बात के भान रहे भारत के ई बीर जाति राजपूत लड़े-भीड़े से ना भाग स। ई मुगलन के खिलाफ अफगानन के ओर से लड़लें स त शेरशाह के दिल्ली के गद्दी तक पहुँचा देलें स। हुमायूँ का इरान भागे के पड़ल रहे। शेरशाह ना मरल रहित त इहाँ मुगलन के पांव त ई उखाड़िये चुकल रह सन। अकेले महाराणा अकबर के कबो चैन से ना रहे दिहलस। शिवाजी औरंगजेब के दिल्ली से बाहर ना निकले दिहलस। ऊ सब जबले एह भारतीय बीर जाति के बीच फूट ना डालल जाई आ एकनिये के सोझा राखके ना लड़ल जाई तबले कहीं सफलता ना मिल सके। एही से अंगरेजी सरकार एह सब के बीच फूट डालल, लोभ-लालच में ले आके दोस्ती के हाथ बढ़ावल शुरू कइल। कुछ राज-रजवाड़ा आ नवाब लोग प्रलोभन में अंगरेजन से समझौता करके देश का संगे गद्दारियो कइल। धीरे धीरे अंगरेज देशी राजा लोग का राज के खतम कइल शुरू कइलें स। दत्तक पुत्रन के राज्याधिकार से वंचित करे के कानून बनावल।
एने देश खातिर मरे-मिटे के कसम खा चुकल लोग आपन रणनीति बदले ला मजबूर हो गइल। बाबू कुँवर सिंह के सलाह पर अक्षयवर राय के हट्ठाकट्ठा जवान बेटा जनसोहावन राय के साजिश के तहत अंगरेजी पलटन में भर्ती करावल गइल। ऊ अंगरेजन के विश्वास जीत के दानापुर छावनी के कप्तान बन गइलें। ऊ बीस साल के उमिर में कप्तान हो गइल रहस। उनका ऊपर पच्चासी रंगरूटन सैनिकन के परेड करावल, ट्रेनिंग देहल आ बागियन पर नजर राखे के जिम्मा रहे। धीरे-धीरे अंगरेजी जुलूम बढ़त गइल। राजा आ नवाब लोग के राज छिनाए लागल। ओह लोग के गिरफ्तारी होखे लागल। गुप्त रूप से कुँवर सिंह के चिट्ठी जनसोहावन राय तक पहुँचावल गइल। जनसोहावन राय के ड्यूटी से आयर बहुत खुश रहत रहे आ उनका पर बहुते विश्वास करे। ऊ आयर से घरे जाए ला दू दिन के छुट्टी मँगलें त सहजता से मिल गइल। ऊ बहुत गुप्त ढ़ंग से जगदीशपुर जाके बाबू कुँवर सिंह से मिललें। सब बात भइल। बाबू कुँवर सिंह मित्र टेलर के बोलावा पर पटना ना जाए के कारन बतवलन त जनसोहावन राय संतुष्ट हो गइलन। बाबू कुँवर सिंह आगे के योजना जनसोहावन राय आ अपना कुछ खास लोग के बीच प्रकट कइलें। दू ओर से मतलब उत्तर आ पूरब से आरा पर चढ़ाई के योजना बनल। जनसोहावन राय धनपुरा होके आपन टुकड़ी लेके अइहें आ हमरा टुकड़ी के लोग गांगी के उत्तर गौसपुर के पूरब वाला आम का बगइचा में तीन बजे तक पहुँच जाई आ आरा पर कब्जा हो जाई। दानापुर छावनी में सूअर आ गाय वाला चर्बी के बंदूक के टोंटा वाला बात फइलाके मने मने बागी-बिद्रोही सिपाहियन के सबकुछ समझा दिहल गइल।
सैनिक सब परेड करत हथिया गाँव होत फ्लैग मार्च करत तिरहा गाँव होत विहटा मोड़ पहुँचल। जमीरा गाँव के पूरब बगइचा में ठहरल। धनपुरा होत आरा पर चढ़ाई करे के रहे। छावनी का मेयर के कुछ साजिश के भनक लाग गइल कि सिपाही बागी होके हर हथियार का संगे आरा पहुँचहीं वाला बाड़ें स। टेलर दू टुकड़ी सेना आरा भेज दिहलस। एगो एस्टीमर से बड़हरा घाट पर आ दोसर मनेर कोहेलना होके। एस्टीमर वाला टुकड़ी गौसगंज ओही आम का बगइचा में पहुँचल जहँवा राते से गाछन पर छूपल कुँवर सिंह वाला टुकड़ी घात लगवले छूपल रहे। जवना के हाथे उहाँ पहुँचल कुल्ह अंगरेज मारल गइलें। धनपुरा का अंगरेजी टुकड़ी पर जनसोहावन राय सिंह के नेतृत्व में बागी सिपाहियन के टुकड़ी तीन बजे भोर में हमला कर दिहलस। उहँवों अंगरेज मारल गइलें। घंटा दू घंटा में आरा पर कब्जा हो गइल। आरा कलक्टरी मैगजीन खजाना कुल्ह लुटा गइल। आरा पर कब्जा के बाद पच्छिम में बीबीगंज में भयानक लड़ाई छिड़ गइल। एह लड़ाई में जनसोहावन राय के पीठ में गोली लाग गइल। बाबू साहेब बच निकललें आ जनसोहावन राय के लेके उनकर गोतिया जवान परगास सिंह उनका के पीठ पर लाद के केहूङ बरनोरा गाँव पहुँच के हीरा ठाकुर के बोला के गोली निकलवावे पट्टी बंहववलें। ऊ पांच साल शिवपुर का जंगल में छूप के लड़ाई के अंजाम देस। उनका पर से सन् 1863 में प्रतिबंध हटल आ सन् 1882 में उनकर देहांत भइल।
2-3 अगस्त, 1957 के बीबीगंज के लड़ाई में बाबू कुँवर सिंह पांव पीछे करत जगदीशपुर के ओर बढ़ गइलें। आयर आरा आजाद कराके जगदीशपुर के ओर विशाल सेना लेके चढ़ाई कइलस। दुलार से जगदीशपुर ले भयानक जुद्ध भइल। 12 अगस्त के आयर जगदीशपुर जीत लिहलस। बाबू साहेब नोखा, रोहतास, सासाराम के फतह करत उत्तर प्रदेश में घुस गइलें। 26 अगस्त के मिर्जापुर के पास विजयगढ़ पहुँचले त अंगरेजन में दहसत फइल गइल। ऊ रामगढ़, राबर्टगंज, रींवा, बाँदा आदि फतह करत काल्पी पहुँचलें। जहाँ ग्वालियर के सैन्य दल उनका से आके मिलल। दिसम्बर में कानपुर में घनघोर लड़ाई भइल बाकिर उहँवा उनका सफलता ना मिलल आ ऊ लखनऊ पहुँच गइलें। जहँवा अवध के नवाब उनका के सम्मान में शिरोपांव भेंट कइले। फेर ऊ आजमगढ़ होत 15 फरवरी के अजोध्या पहुँच गइलन। 22 मार्च ,1858 के अतरौलिया के लड़ाई में कर्नल मिलमैन के तोप के आगे बाबू साहेब के एक ना चलल। ऊ पीछे हट गइलन। बाकिर फेर मिलमैन के जीत के आश्वस्त होखते फेरू टूट पड़लें। मिलमैन आजमगढ़ के ओर जान बचाके भागल।
मिलमैन का सेना के मदद खातिर अंगरेजी सेना बनारस आ गाजीपुर से कर्नल डेम्स के नेतृत्व में आजमगढ़ पहुँचल। 27 मार्च का ओहू सेना समूह के जान बचाके भागे के पड़ल। उहाँ के विजय के बाद बनारस जीतत बाबू साहेब शाहाबाद लौटे के पेयान कइलें। अंगरेजी सेना के के कहो गवर्नल जेनरल लार्ड केनिंग घबड़ा गइल। ऊ सेनापति लार्ड मार्क कर के बनारस भेजलस। 6 अप्रैल के लड़ाई में उहो हार के तोप पीछा करत भागल। बाबू कुँवर सिंह एह तमाम फतह के बाद रणनीति के तहत 13 अप्रैल के दू हजार आपन सैनिक आजमगढ़ में छोड़के गाजीपुर होत जगदीशपुर लवटे के तय कइलें।
17 अप्रैल के नघई गाँव के पास डगलस के विशाल सेना से कुँवर सिंह का सेना के भिड़ंत हो गइल। कुँवर सिंह से हार के डगलस पीछे हट गइल । ऊ कुँवर सिंह के पकड़ ना पावल। लगर्ड खुद लिखले बा कि अंगरेजी सेना कुँवर सिंह का सुव्यवस्थित रणनीति आ शौर्य के चलते कामयाब ना हो सकल। गंगा नदी के पास पहुँच के अफवाह फइलावल गइल कि कुँवर सिंह के सेना बलिया के नजदीक गंगा पार करी। अंगरेज डटल रहलें स। बाकिर उनकर सेना बलिया से दस मील दूर शिवपुरघाट से पार करत रहे। एकर भनक केहू आपने आदमी अंगरेजन तक पहुँचावल।ऊ शिवपुर पहुँच गइलें स। तबतक कुँवर सिंह के कुल्ह सेना नदी पार कर चुकल रहे। कुँवर सिंह अंतिम नाव से पार करत बीच धार तक पहुँचल रहले कि अंगरेज सैनिक के एगो गोरी उनका दहीना कलाई में लाग गइल आ ओह 81 बरिस का शेर के दहिना हाथ बेकामिल हो गइल। अब सउँसे देह में जहर फइले के डर हो गइल। फेर का सोचे के रहे ऊ अपना बाँवा हाथ से तलवार खींच के घायल दहिना हाथ केहुनी पर से काट के गंगा में फेंक दिहलें।। 22 अप्रैल के जगदीशपुर पहुँचले त अंगरेजी सेना दोबारा हमला कर दिहलस। ऊ बुढ़ा शेर अपना जगदीशपुर का सेना के संगे मिल के एकबेर फेर अंगरेजन के हराके भगवलें। जगदीशपुर पर बाबू कुँवर सिंह के कब्जा हो गइल। सउँसे जगदीशपुर में विजयोत्सव मनावल गइल। बाकिर इलाज के अभाव में घाव बढ़त गइल आ 26 अप्रैल के ऊ एह संसार से विदा ले लिहलें। एकरा बावजूद अंगरेजी सेना डरे जगदीशपुर ना जात रहे कि कहीं कुँवर सिंह के मरेके गलत अफवाह होई त सेना का बहुत क्षति उठावे के पड़ित। कई अंगरेज इतिहासकार लिखले बाड़न कि कुशल रहे कि कुँवर सिंह अस्सी-एकासी बरिस के बुढ़ा शेर रहे जवन रणकौशल आ अजगूत बहादुरी से लड़के अंगरेजी सरकार का नाक में दम कर देले रहे। जदि ऊ जवान रहित आ देशी राज रजवाड़ा, नवाब आ जनता के बनावल रणनीति काम कर जाइय त सन् 1857-58 में ही अंगरेजी सरकार का भारत छोड़े के पड़ जाइत। एही चीज के भोजपुरी के महाकवि सर्वदेव तिवारी राकेश अपना महकाव्य ‘ कालजयी कुँवर सिंह ‘ में कुँवर सिंह का मुँहे कहववले बाड़न –
‘ जो जो रे गद्दर आवे के अइले।
बाकिर भेंटइले निचाटे बुढ़ारी।।’
इतिहासकार होम्स लिखलस – ‘ ओह बूढ़ राजपूत के, जवन ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ एतना बहादुरी आ आन से लड़ँ, 26 अप्रैल ,1858 के मृत्यु हो गइल।’ बाकिर दुनिया के क्षहान जोद्धा कहाए वाला सीजर, सिकन्दर, आगस्टस, नेपोलियन आदि से भी बढ़चढ़के 80-81 बरिस के ई भारतीय बीर बाँकुड़ा बाबू कुँवर सिंह नौ-दस महीना लगातार जवना तरह से बेमिसाल लड़ाई लड़लें ओइसे इतिहास में केहू ना लड़ल। अबहीं तक भारतीय इतिहासकार बाबू कुँवर सिंह का अवदान के सही मूल्यांकन ना करके उनका साथे बहुत बड़ अन्याय कइले बा। बाकिर भोजपुरी, हिन्दी आ आउर-आउर भासा के कवि, नाटककार, साहित्यकार आदि बाबू साहेब पर खूब लिखले बाड़न आ आजहूँ लिखाता। आगहूँ लिखाई।
आखिर में हम प्रिंसिपल मनोरंजन बाबू के दू पाँति लिखके अपना अप्रतिम, बेमिसाल, अतुलनीय पूरखा के सरद्धांजलि देहब –
‘ अस्सी वर्षों की हड्डी में जागा जोश पुराना था।
सब कहते हैं कुँवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।।’
प्रस्तुत आलेख सुविख्यात लेखक अउरी कवि डॉ जयकांत सिंह ‘जय’ के लिखल ह। जयकांत जी एसोसिएट प्रोफेसर सह अध्यक्ष, भोजपुरी विभाग, लंगट सिंह महाविद्यालय, बिहार में कार्यरत बानीं अउरी विभिन्न सांस्कृतिक अउरी साहित्यिक गतिविधि में सक्रिय योगदान देत रहेनीं।

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बिहार के डॉक्टर, कोरोना योद्धा डॉक्टर जेपी यादव के दिल्ली में मौत https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/doctor-j-p-yadav-road-accident-3693 https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/doctor-j-p-yadav-road-accident-3693#respond Thu, 16 Apr 2020 17:42:21 +0000 https://www.gahanalive.com/?p=3693 कोरोना के विरुद्ध लड़ाई के योद्धा, बिहारी माटी के लाल, मानवता के सिपाही डॉक्टर जेपी यादव के सोमवार रात रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो गईल। एमसीडी के पॉलीक्लिनिक में बनल स्क्रीनिंग सेंटर से ड्यूटी कर साइकल से लौट रहल साउथ एमसीडी के डॉक्टर के मौत से सभे दुखी बा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक डॉक्टर के […]

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कोरोना के विरुद्ध लड़ाई के योद्धा, बिहारी माटी के लाल, मानवता के सिपाही डॉक्टर जेपी यादव के सोमवार रात रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो गईल।
एमसीडी के पॉलीक्लिनिक में बनल स्क्रीनिंग सेंटर से ड्यूटी कर साइकल से लौट रहल साउथ एमसीडी के डॉक्टर के मौत से सभे दुखी बा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक डॉक्टर के गाड़ी खराब रहल अउरी लॉकडाउन के चलते मिकैनिक भी ना मिलत रहे। एही से उहाँ के अपना बेटा के साइकल से मुनिरका स्थित पॉलीक्लिनिक खातिर सुबह निकल गइनीं। परिवार के लोग कहल कि गाड़ी ठीक होखला पर अस्पताल जाएम लेकिन डॉक्टर साहब कहनीं कि जाए में देरी होई काहे कि स्वास्थ्यकर्मी लोग के पी पी ई किट देवे के बा। ऊ लोग के ज़िंदगी ज़रूरी बा। एतना कह के डॉक्टर साहब आपन बेटा के साइकिल लेके पोलिक्लिनिक चल गइनीं।
जानकारी के मुताबिक अस्पताल से घर लौटे के दौरान डॉक्टरों मालवीय नगर ट्रैफिक सिग्नल के लगे जब दाहिने मुड़त रहनीं तबे एगो कार उहाँ के टक्कर मार देलस। चालक घटना के बाद फरार हो गईल। पीछे कार में आ रहल डॉक्टर के सहयोगी उहाँ के निजी अस्पताल ले गईल लोग, लेकिन विधि के कुछु अउरी ही मंजूर रहे। इलाज के दौराने डॉक्टर जेपी के मौत हो गईल।
डॉक्टर साहब दक्षिण दिल्ली नगर निगम के पोलिक्निक में सीएमओ प्रभारी रहनीं। पुणे से एम बी बी एस के पढ़ाई करे वाला डॉक्टर साहब के पत्नी रश्मि यादव भी कवनो प्राइवेट अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट बानीं। दू गो लइका भी बा जेमे बेटी के उम्र 15 साल अजरी बेटा के उम्र 13 साल बा। डॉ यादव सुपौल जिले के त्रिवेणीगंज थाना क्षेत्र के भूड़ा गांव निवासी किसान महेश्वरी प्रसाद यादव के पुत्र रहनीं।
गहना लाइव कोरोना के योद्धा डॉ जे पी यादव के कर्तव्यनिष्ठा के सलाम कर रहल बा। रउआ एगो जिम्मेदार डॉक्टर रहनीं। सब बिहारी लोग अउरी पूरा देश रउआ पर गर्व कर रहल बा। रउआ एगो ज़िम्मेदार डाक्टर रहनीं तबे त कार ख़राब होखला पर साइकिल से निकल गइनीं। रउआ मानवता के सच्चा सिपाही रहनीं।
उम्मीद बा कि बिहार सरकार राजकीय सम्मान से राउर अंतिम संस्कार करी।

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पुण्यतिथि विशेष- फणीश्वरनाथ रेणु https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/renu-death-anniversary-3640 https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/renu-death-anniversary-3640#respond Sat, 11 Apr 2020 18:08:25 +0000 https://www.gahanalive.com/?p=3640 आज पद्मश्री से सम्मानित, अररिया जिला के औराही हिंगना ग्राम निवासी, भारतीय साहित्य के रत्न फणीश्वरनाथ रेणु के अवसान दिवस ह। इहाँ के “मैला आँचल” अउरी “परती परिकथा” जइसन चर्चित कृति के रचना कइले बानीं। आईं, आज उहाँ के मशहूर कहानी पंचलाइट पढ़ल जाव। पंचलाइट पिछले पंद्रह महीने से दंड-जुर्माने के पैसे जमा करके महतो […]

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आज पद्मश्री से सम्मानित, अररिया जिला के औराही हिंगना ग्राम निवासी, भारतीय साहित्य के रत्न फणीश्वरनाथ रेणु के अवसान दिवस ह। इहाँ के “मैला आँचल” अउरी “परती परिकथा” जइसन चर्चित कृति के रचना कइले बानीं। आईं, आज उहाँ के मशहूर कहानी पंचलाइट पढ़ल जाव।

पंचलाइट

पिछले पंद्रह महीने से दंड-जुर्माने के पैसे जमा करके महतो टोली के पंचों ने पेट्रोमेक्स खरीदा है इस बार, रामनवमी के मेले में | गाँव मे सब मिलाकर आठ पंचायतें हैं | हरेक जाति की अलग अलग ‘सभाचट्टी ‘ है | सभी पंचायतों में दरी, जाजिम , सतरंजी और पेट्रोमेक्स हैं – पेट्रोमेक्स, जिसे गाँव वाले पंचलैट कहते हैं |

पंचलैट खरीदने के बाद पंचो ने मेले में ही तय किया – दस रुपये जो बच गए हैं, इससे पूजा सामग्री खरीद ली जाए – बिना नेम टेम के कल-कब्जे वाली चीज़ का पुन्याह नहीं करना चाहिए | अँगरेज़ बहादुर के राज में भी पुल बनाने के पहले बलि दी जाती थी |

मेले में सभी दिन-दहाड़े ही गाँव लौटे; सबसे आगे पंचायत का छडीदार पंचलैट का डिब्बा माथे पर लेकर और उसके पीछे सरदार, दीवान, और पंच वगैरह | गाँव के बाहर ही ब्रह्मण टोली के फुटंगी झा ने टोक दिया – कितने मे लालटेन खरीद हुआ महतो ?

…. देखते नहीं हैं, पंचलैट है! बामन टोली के लोग ऐसे ही बात करते हैं | अपने घर की ढिबरी को भी बिजली-बत्ती कहेंगे और दूसरों के पंचलैट को लालटेन |

टोले भर के लोग जमा हो गए | औरत-मर्द, बूढ़े-बच्चे सभी कामकाज छोड़कर दौड़ आये – चल रे चल ! अपना पंचलैट आया है, पंचलैट ! छड़ीदार अगनू महतो रह- रहकर लोगों को चेतावनी देने लगा – हाँ, दूर से, जरा दूर से ! छू-छा मत करो, ठेस न लगे |

सरदार ने अपनी स्त्री से कहा- सांझ को पूजा होगी; जल्द से नहा-धोकर चौका-पीढ़ा लगाओ |

टोले की कीर्तन-मंडली के मूलगैन ने अपने भगतिया पच्च्को को समझा कर कहा- देखो, आज पंचलैट की रौशनी मे कीर्तन होगा | बेताले लोगों से पहले ही कह देता हूँ , आज यदि आखर धरने में डेढ़-बेड़ हुआ, तो दूसरे दिन से एकदम बैकाट |

औरतों की मंडली मे गुलरी काकी गोसाईं का गीत गुनगुनाने लगी | छोटे-छोटे बच्चों ने उत्साह के मारे बेवजह शोरगुल मचाना शुरू किया |

सूरज डूबने के एक घंटा पहले ही टोले भर के लोग सरदार के दरवाजे पर आकर खड़े हो गए- पंचलैट, पंचलैट !
पंचलैट के सिवा और कोई गप नहीं, कोई दूसरी बात नहीं | सरदार ने गुड़गुड़ी पीते हुआ कहा- दुकानदार ने पहले सुनाया, पूरे पांच कौड़ी पांच रुपया | मैंने कहा की दुकानदार साहेब मत समझिये की हम एकदम देहाती हैं | बहुत बहुत पंचलैट देखा है | इसके बाद दुकानदार मेरा मूंह देखने लगा | बोला, लगता है आप जाती के सरदार हैं | ठीक है, जब आप सरदार होकर खुद पंचलैट खरीदने आये हैं तो जाइए, पूरे पांच कौड़ी में आपको दे रहे हैं |

दीवान जी ने कहा — अलबत्ता चेहरा परखने वाला दूकानदार है | पंचलैट का बक्सा दूकान का नौकर देना नहीं चाहता था | मैंने कहा, देखिये दूकानदार साहेब, बिना बक्सा पंचलैट कैसे ले जायेंगे | दूकानदार ने नौकर को डांठते हुए कहा, क्यों रें ! दीवान जी की आँख के आगे ‘धुरखेल’ करता है ; दे दो बक्सा |

टोले के लोगो ने अपने सरदार और दीवान को श्रद्धा-भरी निगाहों से देखा | छड़ीदार ने औरतों की मंडली को सुनाया – रास्ते मे सन्न-सन्न बोलता था पंचलैट |

लेकिन….ऐन मौके पर ‘लेकिन’ लग गया ! रुदल साह बनिए की दूकान से तीन बोतल किरासन तेल आया और सवाल पैदा हुआ, पंचलैट को जलाएगा कौन ?

यह बात पहले किसी के दिमाग में नहीं आई थी | पंचलैट खरीदने के पहले किसी ने न सोचा | खरीदने के बाद भी नहीं | अब पूजा की सामग्री चौकी पर सजी हुई है, किर्तनिया लोग खोल-ढोल-करताल खोल कर बैठे हैं, और पंचलैट पड़ा हुआ है | गाँव वालो ने आज तक कोई ऐसी चीज़ नहीं खरीदी, जिसमे जलाने-बुझाने की झंझट हो | कहावत है न, भाई रे, गाय लूं ? तो दुहे कौन ? ….लो मजा ! अब इस कल-कब्जे वाली चीज़ को कौन बाले ?

यह बात नहीं की गाँव भर मे कोई पंचलैट जलाने वाला नहीं | हरेक पंचायत मे पंचलैट है, उसके जलाने वाले जानकार हैं | लेकिन सवाल है कि पहली बार नेम-टेम करके, शुभ-लाभ करके, दूसरी पंचायत के आदमी की मदद से पंचलैट जलेगा? इससे तो अच्छा है कि पंचलैट पड़ा रहे | ज़िन्दगी भर ताना कौन सहे ! बात-बात मे दूसरे टोले के लोग कूट करेंगे — तुम लोगों का पंचलैट पहली बार दूसरे के हाथ …..! न, न ! पंचायत की इज्जत का सवाल है | दूसरे टोले के लोगो से मत कहिये |

चारों ओर उदासी छा गयी | अन्धेरा बढ़ने लगा | किसी ने अपने घर मे आज ढिबरी भी नहीं जलाई थी | …..आखिर पंचलैट के सामने ढिबरी कौन बालता है |

सब किये-कराये पर पानी फिर रहा था | सरदार, दीवान और छड़ीदार कि मुंह मे बोली नहीं | पंचों के चेहरे उतर गए थे | किसी ने दबी आवाज़ मे कहा — कल-कब्जे वाली चीज़ का नखरा बहुत बड़ा होता है |

एक नौजवान ने आकर सूचना दी — राजपूत टोली के लोग हसतें- हसतें पागल हो रहे हैं | कहते हैं, कान पकड़ कर पंचलैट के सामने पांच बार उठो-बैठो, तुरंत जलने लगेगा |

पंचों ने सुनकर मन-ही-मन कहा — भगवान् ने हसने का मौका दिया है, हसेंगे नहीं ? एक बूढ़े ने लाकर खबर दी — रूदल साह बनिया भारी बतंगड़ आदमी है | कह रहा है पंचलैट का पम्पू ज़रा होशियारी से देना |

गुलरी काकी की बेटी मुनरी के मुंह में बार-बार एक बात आकर मन में लौट जाती है | वह कैसे बोले ? वह जानती है कि गोधन पंचलैट बालना जानता है | लेकिन, गोधन का हुक्का-पानी पंचायत से बंद है | मुनरी कि माँ ने पंचायत से फरियाद की थी कि गोधन रोज उसकी बेटी को देखकर ‘सलम-सलम’ वाला सलीमा का गीत गाता है – हम तुमसे मोहब्बत करके सलम | पंचों की निगाह पर गोधन बहुत दिन से चढ़ा हुआ था | दूसरे गाँव से आकर बसा है गोधन, और अब तक टोले के पंचों को पान-सुपारी खाने के लिए भी कुछ नहीं दिया | परवाह ही नहीं करता | बस, पंचों को मौका मिला | दस रुपया जुर्माना | न देने से हुक्का-पानी बंद | ….आज तक गोधन पंचायत से बाहर है | उससे कैसे कहा जाए ! मुनरी उसका नाम कैसे ले ? और उधर जाती का पानी उतर रहा है |

मुनरी ने चालाकी से अपनी सहली कनेली के कान में बात दाल दी — कनेली ! …चिगो, चिध, -s -s , चीन….|

कनेली मुस्कराकर रहा गयी –गोधन…तो बंद है | मुनरी बोली –तू कह तो सरदार से |

‘गोधन जानता है पंचलैट बालना |’ कनेली बोली |

कौन, गोधन ? जानता है बालना ? लेकिन …. |

सरदार ने दीवान की ओर देखा और दीवान ने पंचों की ओर | पंचों ने एक मत होकर हुक्का-पानी बंद किया है | सलीमा का गीत गाकर आँख का इशारा मारने वाले गोधन से गाँव भर के लोग नाराज़ थे | सरदार ने कहा — जाति की बंदिश क्या, जबकि जाति की इज्जत ही पानी में बही जा रही है ! क्यों जी दीवान ?

दीवान ने कहा — ठीक है |

पंचों ने भी एक स्वर में कहा — ठीक है | गोधन को खोल दिया जाय |

सरदार ने छड़ीदार को भेजा | छड़ीदार वापस आकर बोला — गोधन आने को राज़ी नहीं हो रहा है | कहता है, पंचों की क्या परतीत है ? कोई कल-कब्ज़ा बिगड़ गया तो मुझे ही दंड जुर्माना भरना पड़ेगा |

छड़ीदार ने रोनी सूरत बना कर कहा — किसी तरह से गोधन को राज़ी करवाइए, नहीं तो कल से गाँव मे मुंह दिखाना मुश्किल हो जाएगा |

गुलरी काकी बोली — ज़रा मैं देखूं कहके |

गुलरी काकी उठ कर गोधन के झोपड़े की ओर गयी और गोधन को मना लाई | सभी के चेहरे पर नयी आशा की रोशनी चमकी | गोधन चुपचाप पंचलैट में तेल भरने लगा | सरदार की स्त्री ने पूजा सामग्री के पास चक्कर काटती हुई बिल्ली को भगाया | कीर्तन-मंडली के मूलगैन मुरछल के बालों को संवारने लगा | गोधन ने पूछा — इस्पिरिट कहाँ है ? बिना इस्पिरिट के कैसे जलेगा ?

…. लो मजा ! अब यह दूसरा बखेड़ा खड़ा हुआ | सभी ने मन ही मन सरदार, दीवान और पंचों की बुद्धि पर अविश्वास प्रकट किया — बिना बूझे-समझे काम करते हैं यह लोग | उपस्थित जन-समूह में फिर मायूसी छा गई | लेकिन, गोधन बड़ा होशियार लड़का है | बिना इस्पिरिट के ही पंचलैट जलाएगा | ….थोडा गरी का तेल ला दो | मुनरी दौड़कर गई और एक मलसी गरी का तेल ले आई | गोधन पंचलैट में पम्प देने लगा |

पंचलैट की रेशमी थैली मे धीरे-धीरे रौशनी आने लगी | गोधन कभी मुंह से फूंकता, कभी पंचलैट की चाबी घुमाता | थोड़ी देर के बाद पंचलैट से सनसनाहट की आवाज़ निकालने लगी और रोशनी बढती गई | लोगों के दिल का मैल दूर हो गया | गोधन बड़ा काबिल लड़का है |

अंत में पंचलैट की रोशनी से सारी टोली जगमगा उठी, तो कीर्तनिया लोगों ने एक स्वर में, महावीर स्वामी की जय-ध्वनि के साथ कीर्तन शुरू कर दिया | पंचलैट की रोशनी में सभी के मुस्कराते हुए चेहरे स्पष्ट हो गए | गोधन ने सबका दिल जीत लिया | मुनरी ने हरकत-भरी निगाह से गोधन की ओर देखा | आँखें चार हुई और आँखों ही आँखों मे बातें हुई – कहा सुना माफ़ करना ! मेरा क्या कसूर ?

सरदार ने गोधन को बहुत प्यार से पास बुला कर कहा — तुमने जाति की इज्जत रखी है | तुम्हारे सात खून माफ़ | खूब गाओ सलीमा का गाना |

गुलरी काकी बोली — आज रात में मेरे घर में खाना गोधन |

गोधन ने एक बार फिर मुनरी की ओर देखा | मुनरी की पलके झुक गई |

कीर्तनिया लोगो ने एक कीर्तन समाप्त कर जयध्वनि की — जय हो ! जय हो! ….पंचलैट के प्रकाश में पेड़-पौधों का पत्ता-पत्ता पुलकित हो रहा था |

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महापंडित राहुल सांकृत्यायन जयंती विशेष https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/rahul-sankrityayan-jayanti-3582 https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/rahul-sankrityayan-jayanti-3582#respond Thu, 09 Apr 2020 14:55:02 +0000 https://www.gahanalive.com/?p=3582 ई दुनिया बड़ बे; बहुत बड़ औरी एतहत बड़हन दुनिया में जाने केतने लोग बाड़ें औरी जाने केतने लोग पहिलहूँ ए दुनिया में रहल बाड़ें लेकिन कुछ नाँव लोगन के मन में ए तरे घुस जाला कि ओकरा खाती समय के केवनो मतलब ना रह जाला। औरी ओह हाल में बकत आपन हाथ-गोड़ तुरि के […]

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ई दुनिया बड़ बे; बहुत बड़ औरी एतहत बड़हन दुनिया में जाने केतने लोग बाड़ें औरी जाने केतने लोग पहिलहूँ ए दुनिया में रहल बाड़ें लेकिन कुछ नाँव लोगन के मन में ए तरे घुस जाला कि ओकरा खाती समय के केवनो मतलब ना रह जाला। औरी ओह हाल में बकत आपन हाथ-गोड़ तुरि के बइठ जाला। चुपचाप। अइसन लोगन क नाँव औरी काम एक पीढी से दूसरकी पीढी ले बिना केवनो हील-हौल पहुँच जाला। कुछ अइसने लोगन में एगो नाम बा महापण्डित राहुल सांकृत्यायन जी कऽ जिनकर साहित्य में बहुआयामी योगदान बा। छ्त्तीस गो भाखा के गियान औरी डेढ सौ किताबन के लिखनिहार, सांकृत्यायन के जी के दुनिया जाने केतने नाँव दिहलस; महापण्डित, यायावर, अन्वेषक, कथाकार, आलोचक, नाटककार, त्रिपिटकाचार्य, निबन्ध लेखक, युगपरिवर्तन साहित्यकार औरी ना जाने केतने नाँव। इहाँ के बचपन के नाँव केदारनाथ पाण्डेय रहल। राहुल सांकृत्यायन नाम इहाँ का खुदे रखनी जब इहाँ बौद्ध धर्म के परभाव अईनी। भगवान बुद्ध के लईका राहुल पर इहाँ राहुल नाँव लिहनी औरी अपनी कुल के गोत्र सांकृत्य पर सांकृत्यायन औरी हो गईनी राहुल सांकृत्यायन। उहाँ का हिन्दी से ले के भोजपुरी तक भाखा में लिखनी लेकिन उहाँ भोजपुरी खाती कम बाकी हिन्दी के घुमन्तु साहित्य (यात्रा-वृतांत) सृजन औरी विश्व दर्शन खाती ढेर जानल जाला। इहाँ के हिन्दी घुमन्तु साहित्य (यात्रा-वृतांत) के पिता कहल जाला।
लरिकाई औरी जिनगी क जतरा
महापण्डित राहुल सांकृत्यायन जी, केदारनाथ पाण्डेय के नाम से आजमगढ़ के कनैला गाँव में ९ अप्रैल १८९३ के दिने पंदहा गाँव के रहबासी औरी एगो धार्मिक किसान परिवार में गोवर्धन पाण्डेय जी के घरे जनम लिहनी। लेकिन इहाँ लरिकाई अपनी ननिऔरा में नाना पण्डित राम शरण पाठक क घरे कनैला गाँव में गुजरल। चार भाईन केदारनाथ, श्यामलाल, रामधारी औरी श्रीनाथ औरी एगो बहिन रामपियारी में सबसे बड़ केदारनाथ बहुते कम उमिर में अनाथ हो गइलीं। इहाँ के माई कुलवन्ती देवी के मरन बस अट्ठाइस साल के उमिर में हो गइल तऽ पैंतालीस साल के उमिर में पिता जी के गुजर गइलें। ए कारन इहाँ के लालन-पालन नाना के घरे भईल। बहुत कम उमिर में माई बाबूजी के मरला के असर उहाँ के सगरी जिनगी पर परल औरी बहुत कम उमिर में घर-गिरहथी औरि जिनगी से मन उचट गइल। परिनाम ई भईल कि नौ बरिस के उमिर में घर दुआर छोड़ि के भागि गईनी लेकिन घरे अभी कुछ अईसन बाकी रहे जेवन उहाँ के थोरही दिन में बोला लिहलस।
गाँवे से कुछ दूर रानी सराय के मदरसा में शुरुआती पढाई-लिखाई शुरू भईल लेकिन 1902 के हैजा के बेमारी फईलल औरी पढाई बन हो गईल। फेर इनकर बाबूजी इनके इनकरी फूफा महादेव पंडित के संगे बछवल गाँव भेज दिहल जहाँ संस्कृत से परिचय भईल। सातवीं कक्षा के पढाई पुरा करत-करत मन भरि गईल। पढाई के घरी एगो शेर पढलें
सैर कर दुनिया की गाफिल,जिंदगानी फिर कहां।
जिन्दगानी गर रही तो,नॊजवानी फिर कहां।
ए शेर कऽ असर केदारनाथ के मन पर बहुत गहिराह पड़ल। एही घरी जब अभी उमिर खाली तेरह बरिस के रहे तऽ केदारनाथ के बियाह कऽ दिहल गईल। लेकिन ई बियास काहाँ ले उनका के बान्ह के राखित; उल्टे उनकर मन उचट गईल औरी चौदह साल के उमिर में घर-दुआर छोड़ि के कलकत्ता भागि गईलें। बाद में केदारनाथ के भेंट बिहार के परसा मठ के महंत से भईल औरी ऊ केदारनाथ के अपनी संगे अपनी मठ ले के चलि गईलें औरी केदारनाथ के नया नाँव रखलें रामोदर स्वामी। रामोदर स्वामी परसा मठ में हिन्दू शास्त्रन औरी संस्कृत के जम के पढाई कईलें औरी कुछ समय बाद इनकर मन भर गईल परसा मठ से। एही घरी इनकर संपर्क कुछ स्वतंत्रता सेनानीन से भईल औरी अखबारन में रा सा ले नाँव से लिखे लगन। पर उनकर मन कब कहीं एक जगह टिके वाला रहे कि टिकीतऽ। सभ छोड़-छाड़ के चलि देहलें। औरी बौद्द धर्म अपना लिहलें औरी रामोदर स्वामी बनि गईलें राहुल सांकृत्यायन।
घुमक्कड़ी
इहाँ के नाना फौजी रहलें औरी उहाँ के जतरा औरी सिकार के कहानी हमेसा सुनावस। कबो दिल्ली के तऽ कबो हैदराबाद के औरी जाने कहाँ-कहाँ के बात केदारनाथ के बतावस औरी ई सभ काथा-कहानी जेवन एगो लईका के बहलावे खाती सुनावत रहलें ओकर असर छोटहन केदारनाथ के मन पर बहुते गहिराह परल औरी दुनिया देखे के लालसा जाग गईल। उनकर पहिला जतरा बनारस कऽ भईल जब उनकरी जनेव (जनेऊँ) खाती रेल गाड़ी से विंध्याचल गईलें। दूसरी बेर भागि के कलकत्ता गईलें जब नौ साल के उमिर रहे औरी फेर चौदह साल के उमिर में जब घीव के हाँड़ी गिर फूट गईल औरी नाना के डरन केदारनाथ घर छोड़ि के कलकत्ता पहुँच गईलें। सन 1910 से ले के 1914 ले वैराग्य भाव के प्रभावित हो के हिमालय घूमत बितबलें ओकरा बाद एगो बहुत लमहर औरी ना ओराए वाला जतरा शुरू भईल। जेवन बनारस, अगारा, लाहौर, लद्दाख औरी कुर्ग़ होखत श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, इंग्लैण्ड, यूरोप, जापान, कोरिया, मंचूरिया, सोवियत रुस, चीन औरी ईरान तक गईल। जहाँ गईनी उहाँ के भाखा सीखनी।
साहित्यिक जतरा
सांकृत्यायन जी के साहित्यिक जिनगी 1927 में शुरू भईल जेवन सगरी जिनगी चलल। अपनी साहित्यिक जतरा में उहाँ के डेढ़ सौ किताब, जेवना में से एक सौ उन्तीस गो प्रकासित भईली सऽ। संगहीं उहाँ के हजारन गो लेख, निबन्ध औरी व्याख्यान भी लिखले बानी। कुछ बरियार औरी महत्त्वपूर्ण रचना नीचे दिहल बाड़ी सऽ:
उपन्यास औरी कहानी (मौलिक)
सतमी के बच्चे (कहानी, 1939 ई.), ‘जीने के लिए’ (1940 ई.), ‘सिंह सेनापति’ (1944 ई.), ‘जय यौधेय’ (1944 ई.), ‘वोल्गा से गंगा’ (कहानी संग्रह, 1944 ई.), ‘मधुर स्वप्न’ (1949 ई.), ‘बहुरंगी मधुपुरी’ (कहानी, 1953 ई.), ‘विस्मृत यात्री’ (1954 ई.), ‘कनैला की कथा’ (कहानी, 1955-56 ई.), ‘सप्तसिन्धु’
उपन्यास औरी कहानी (अनुबाद)
‘शैतान की आँख’ (1923 ई.), ‘विस्मृति के गर्भ से’ (1923 ई.), ‘जादू का मुल्क’ (1923 ई.), ‘सोने की ढाल’ (1938), ‘दाखुन्दा’ (1947 ई.), ‘जो दास थे’ (1947 ई.), ‘अनाथ’ (1948 ई.), ‘अदीना’ (1951 ई.), ‘सूदख़ोर की मौत’ (1951 ई.), शादी’ (1952 ई.)
साहित्य औरी इतिहास
‘विश्व की रूपरेखा’ (1923 ई.), ‘तिब्बत में बौद्ध धर्म’ (1935 ई.), ‘पुरातत्त्व निबन्धावलि’ (1936 ई.), ‘हिन्दी काव्यधारा’ (अपभ्रंश, 1944 ई.), ‘बौद्ध संस्कृति’ (1949 ई.), ‘साहित्य निबन्धावली’ (1949 ई.), ‘आदि हिन्दी की कहानियाँ’ (1950 ई.), ‘दक्खिनी हिन्दी काव्यधारा’ (1952 ई.), ‘सरल दोहा कोश’ (1954 ई.), ‘मध्य एशिया का इतिहास, 1,2’ (1952 ई.), ‘ऋग्वैदिक आर्य’ (1956 ई.), ‘भारत में अंग्रेज़ी राज्य के संस्थापक’ (1957 ई.), ‘तुलसी रामायण संक्षेप’ (1957 ई.), दक्खिनी हिन्दी का व्याकरण
भोजपुरी नाटक
‘तीन नाटक’ (1942 ई.), ‘पाँच नाटक’ (1944 ई.)
कोश
‘शासन शब्द कोश’ (1948 ई.), ‘राष्ट्रभाषा कोश’ (1951 ई.)
जीवनी
‘मेरी जीवन यात्रा’ (दो भागों में 1944), ‘सरदार पृथ्वी सिंह’ (1944 ई.), ‘नये भारत के नये नेता’ (1944 ई.), ‘राजस्थानी रनिवास’ (1953 ई.), ‘बचपन की स्मृतियाँ’ (1953 ई.), ‘अतीत से वर्तमान’ (1953 ई.), ‘स्तालिन’ (1954 ई.), ‘कार्ल मार्क्स’ (1954 ई.), ‘लेनिन’ (1954 ई.), ‘अकबर’ (1956 ई.), ‘माओत्से तुंग’ (1954 ई.), ‘घुमक्कड़ स्वामी’ (1956 ई.), ‘असहयोग के मेरे साथी’ (1956 ई.), ‘जिनका मैं कृतज्ञ’ (1956 ई.), ‘वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली’ (1957 ई.)
धरम औरी दरसन
‘वैज्ञानिक भौतिकवाद’ (1942 ई.), ‘दर्शन दिग्दर्शन’ (1942 ई.), ‘बौद्ध दर्शन’ (1942 ई.) ‘बुद्धचर्या’ (1930 ई.), ‘धम्मपद’ (1933 ई.), ‘मज्झिमनिकाय’ (1933), ‘विनय पिटक’ (1934 ई.), ‘दीर्घनिकाय’ (1935 ई.), ‘महामानव बुद्ध’ (1956 ई.), संयुत्त निकाय
संस्कृत बालपोथी (सम्पादन) धरम, दरसन
‘वादन्याय’ (1935 ई.), ‘प्रमाणवार्त्तिक’ (1935 ई.), ‘अध्यर्द्धशतक’ (1935 ई.), ‘विग्रहव्यावर्त्तनी’ (1935 ई.), ‘प्रमाणवार्त्तिकभाष्य’ (1935-36 ई.), ‘प्र. वा. स्ववृत्ति टीका’ (1937 ई.), ‘विनयसूत्र’ (1943 ई.)
राजनीति औरी साम्यवाद
‘बाइसवीं सदी’ (1923 ई.), ‘साम्यवाद ही क्यों’ (1934 ई.), ‘दिमागी ग़ुलामी’ (1937 ई.), ‘क्या करें’ (1937 ई.), ‘तुम्हारी क्षय’ (1947 ई.), ‘सोवियत न्याय’ (1939 ई.), ‘राहुल जी का अपराध’ (1939 ई.), ‘सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी का इतिहास’ (1939 ई.), ‘मानव समाज’ (1942 ई.), ‘आज की समस्याएँ’ (1944 ई.), ‘आज की राजनीति’ (1949 ई.), ‘भागो नहीं बदलो’ (1944 ई.), ‘कम्युनिस्ट क्या चाहते हैं?’ (1953 ई.)
जतरा
‘मेरी लद्दाख यात्रा’ (1926 ई.), ‘लंका यात्रावली’ (1927-28 ई.), ‘तिब्बत में सवा वर्ष’ (1939 ई.), ‘मेरी यूरोप यात्रा’ (1932 ई.), ‘मेरी तिब्बत यात्रा’ (1934 ई.), ‘यात्रा के पन्न’ (1934-36 ई), ‘जापान’ (1935 ई.), ‘ईरान’ (1935-37 ई.), ‘रूस में पच्चीस मास’ (1944-47 ई.), ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ (1949 ई.), ‘एशिया के दुर्गम खण्डों में’ (1956 ई.)
देस-दरसन
‘सोवियत मध्य एशिया’ (1947 ई.), ‘किन्नर देश’ (1948 ई.), ‘दार्जिलिंग परिचय’ (1950 ई.), ‘कुमाऊँ’ (1951 ई.), ‘गढ़वाल’ (1952 ई.), ‘नैपाल’ (1953 ई.), ‘हिमालय प्रदेश’ (1954 ई.), ‘जौनसागर देहरादून’ (1955 ई.), ‘आजमगढ़ पुरातत्त्व’ (1955)
भोजपुरी साहित्य में जोगदान
भोजपुरी साहित्य में राहुल सांकृत्यायन जी के जोगदान बहुत बरिआर बा। इहाँ का कम से कम आठ गो नाटक भोजपुरी में लिखने बानी। मेहरारुन के दुरदसा, जोंक, नइकी दुनिया, जपनिया राछस, ढुनमुन नेता, देस रक्षक, जरमनवा के हार निहचय, प्रमुख रहे जवन दू भागन में परकासित भइल बा; ‘तीन नाटक’ औरी ‘पाँच’ नाटक के नाँव से।
हर दोसरहा आदमी नियर इहाँ में भी अपनी भाखा खाती बहुत परेम औरी इज्जत रहे लेकिन इहाँ का भोजपुरी में थोरी देरी से लिखे शुरू कईले बानी। आदमी कऽ सुभाव हऽ कि ऊ पहिले जवार के देवता पूजे ला, फेर तब जा के घर क देवता के पूजे ला। कारन बस इतने बा कि जेवन चीझ के बारे में आदमी जनमते सुने लागेला ओकर बहुत मोल ना होला। लेकिन मय देस दुनिय देखला के बाद बुझाला कि घरहूँ तऽ ऊहे सभ चीझ बा जेवन बहरि बा। फेर घर के चीझ से परेम जागे ला। सायद राहुल सांकृत्यायन जी संगे भी इहे बात रहल कि इहाँ वोल्गा से गंगा ले आवे में लमहर बकत लागि गईल। इहाँ के पहिला नाटक कऽ किताब सन 1942 में ‘तीन नाटक’ कऽ नाँव से लिखनी औरी दूसरकी नाटक कऽ किताब ‘पाँच नाटक’ के नाँव से 1944 में छ्पल। लेकिन ए नाटकन के पढला पर साफ-साफ लऊके ला कि केतना गहीर समझ रहल होई उहाँ के पूर्वी समाज के कि आजो उहाँ के नाटक समाज खाती सीसा नियर बा। ‘जोंक’ नाटक के एगो गीत आजो केतना सही लागत बा।
“हे फिकिरिया मरलस जान।
साँझ बिहान के खरची नइखे, मेहरी मारै तान।।
अन्न बिना मोर लड़का रोवै, का करिहैं भगवान।। हे॰।।

करजा काढि़-काढि़ खेती कइली, खेतवै सूखल धान।।
बैल बेंचि जिमदरवा के देनी सहुआ कहे बेईमान।। हे॰।।”
एके पढला पर कहीं से ई नईखे लागत कि ई आज के सच ना हऽ। किसान के हाल जेवन बरणन सन 1942 में उहाँ का कईले बानी ऊ आजो सच लागता। ई खाली एगो उदाहरन बा उहाँ के भोजपुरिया समाज के समझ के बारे में। बाकी रचनन के पढला पर बहुते कुछ नजर आवेला। छोट से छोट भावन के भी उहाँ बड़ी बढिया से परस्तुत कईले बानी।
भोजपुरी खाती ऊठल परेम उहाँ के भीतर दोसर क्षेत्रीय भाखन के बारे में राय बदलले बा औरी कईगो भाखा जईसे कि आज के अंगिका औरी वज्जिका के नाँव उहाँ का धईनी। उहाँ का भोजपुरी के गहन अध्ययन कईनी औरी एकरो नाँव ‘मल्ली’ औरी ‘काशिका’ पुरान महाजनपदन के नाँव से धरे के कोसिस कईनी लेकिन लोगन के ई पसन ना परल काँहे कि भोजपुरी नाँव पहिलहीं से परसिध हो गईल रहे औरी भोजपुरी के उहाँ के दू गो भाखा के रुप में देखावत औरी बाँटत रहनी।
उहाँ के भोजपुरी के परचार औरी परसार खाती बहुते परियास कईनी। सन 1947 के भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्षता कइनी जेवन गोपालगंज, बिहार में भईल रहे। उहें के कहला पर महेन्द्र शास्त्री जी 1948 में भोजपुरी के पहिला पत्रिका “भोजपुरी” निकलनीं। ‘भिखारी ठाकुर’ जी के साहित्य जगत में मान-सम्मान औरी पहिचान दियवावे में उहाँ के बहुत बड़हन जोगदान बा। उहें का सबसे पहिले ‘भिखारी ठाकुर’ जी के ‘भोजपुरी क शेक्सपियर’ औरी ‘भोजपुरी क हीरा’ उपाधि दिहनी।
राजनीति औरी आंदोलन
सांकृत्यायन जी सन 1921 से सन 1927 कऽ समय में राजनीति में आ गईल बानी। एही खाती कुछ दिन छपरा में रहनी। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिहनी तऽ जेल जाए के परल औरी बक्सर जेल में छव महीना रहनी। एही घरी बाढ से मारल लोगन के सेवा भी कईनी औरी कांग्रेस के जिला मंत्री भी रहनी। एकरा बाद 1927 में श्रीलंका चल गईनी। फेर 1938 से 1944 के बीच कई गो किसान औरी मजदूर आंदोलन के हिस्सा बननी। एही समय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बनला खाती 29 महीना खाती 1940 से 1942 के बीच जेल में रहनी।
धरम
इहाँ के जनम एगो सनातनी बाभन परिवार में भईल औरी शुरूआती संस्कार भी सनातनी ढंग से भईल लेकिन सांकृत्यायन जी के संबन्ध में ई सभ कुछ बेकार हो गईल औरी उहाँ ओहे मननी जेवन उहाँ के तर्क औरी बुद्धि के हिसाब से ठीक लागल। उहाँ के हर धार्मिक रूढि के बिरोध कईले बानी। ‘तुम्हारी क्षय’ ए बात उदाहरन बा।
पुरस्कार औरी सम्मान
सांकृत्यायन जी कऽ लगे केवनो औपचारिक डिग्री ना रहे तबो उहाँ क किताब ‘मध्य एशिया का इतिहास’ एक समय आक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी क कोर्स में रहे। उहाँ के अनुराधा पुर विश्वविद्यालय क दर्शन विभाग औरी रुस क लेलिनग्राद विश्वविद्यालय में प्राचार्य के रुप में पढवनी लेकिन भारत में उहाँ के ऊ मान सम्मान ना मिलल जेकर उहाँ के हकदार रहनी। बाद में उहाँ 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार औरी 1963 पद्म भूषण पुरस्कार मिलल। उहाँ के मरला के बाद 1993 जतरा साहित्य के क्षेत्र में महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार भारत सरकार देबे शुरू कईलस। 1993 में भारत सरकार के डाक विभाग उहाँ पर एक रुपया के डाक टिकट भी जारी कईलस। अब संगहीं भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय भी महापंडित राहुल सांकृत्यायन पर्यटन पुरस्कार के नाम से पर्यटन साहित्य खाती हर साल पुरस्कार देले। उहाँ के गाँवे एगो चित्रसाला भी बलन बा।
पारिवारिक जिनगी
इहाँ का अपनी जिनगी में तीन गो बियाह कइले रहनी। पहिला बियाह नौ साल के उमिर में घर के लोग कईल। दूसरका बियाह उहाँ के रुस में मास्को निवास के घरी कईनी। लेलिनग्राड विश्वविद्यालय के भारत-तिब्बत विभाग के सचिव ‘लोला येलेना’ नाँव के एगो मेहरारू से इहाँ के परेम हो गईल औरी उनसे इहाँ के बियाह क लिहनी औरी एगो लईक भी भईल जेकर नाँव इहाँ ‘राहुलोविच’ रखनी। लेकिन भारत लौटे बेरा अपनी पत्नी औरी लईका के ओही जा छोड़ के आ गईनी औरी मसूरी में रहे लगनी। एहिजा उहाँ के अपनी स्टैनो कमला से बियाह कईनी। बाद में इहाँ कऽ दार्जलिंग चलि गईनी औरी ओहिजा स्मृतिलोप औरी मधुमेह के बेमारी से १४ अप्रैल, १९६३ अपनी जिनगी जतरा पुरा कईनी।
संदर्भ सूची
डा उदय नारायण तिवारी, भोजपुरी भाषा और साहित्य, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना
श्री दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह, भोजपुरी के काव्य और कवि, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना
जी ए ग्रियेर्सन, लिग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया, जिल्द-5, खंड-2
Ram Sharan Sharma, Rahul Sankrityayan and Social Change, Indian History Congress, 1993.
Himalayan Buddhism, Past and Present: Mahapandit Rahul Sankrityayan centenary volume by D. C. Ahir (ISBN 978-81-7030-370-1).
Prabhakar Machwe: “Rahul Sankrityayan (Hindi Writer)” New Delhi 1998: Sahitya Akademi. (ISBN 81-7201-845-2).
Bharati Puri, Traveller on the Silk Road: Rites and Routes of Passage in Rahul Sankrityayan’s Himalayan Wanderlust, China Report (Sage: New Delhi), February 2011, vol. 47, no. 1, pp.37-58.
महापंडित राहुल सांकृत्यायन पर प्रस्तुत आलेख राजीव उपाध्याय(संपादक, मैना) के लिखल ह।

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सरधांजलि : भोजपुरिया महानायक डॉ. प्रभुनाथ सिंह https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/dr-prabhunath-singh-3519 https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/dr-prabhunath-singh-3519#respond Mon, 30 Mar 2020 15:39:20 +0000 https://www.gahanalive.com/?p=3519 शब्दांजलि-सरधांजलि : भोजपुरी आंदोलन के महानायक आ पहिल गद्यात्मक व्यंग्यकार डॉ. प्रभुनाथ सिंह हमरा समझ से संस्कृत के देवभाषा एह से कहल गइल कि एकरा में रचल प्राय: हर कविता चाहे श्लोक समस्त सृष्टि खातिर जीवन मंत्र के काम करेला। नमूना के रूप में एगो श्लोक देखीं – ” अमन्त्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलं वनौषधम्। अयोग्यो […]

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शब्दांजलि-सरधांजलि :
भोजपुरी आंदोलन के महानायक आ पहिल गद्यात्मक व्यंग्यकार डॉ. प्रभुनाथ सिंह

हमरा समझ से संस्कृत के देवभाषा एह से कहल गइल कि एकरा में रचल प्राय: हर कविता चाहे श्लोक समस्त सृष्टि खातिर जीवन मंत्र के काम करेला। नमूना के रूप में एगो श्लोक देखीं –
” अमन्त्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलं वनौषधम्।
अयोग्यो पुरुषो नास्ति, योजकस्त्र दुर्लभ:।। ”
एह श्लोक के आशय ई बा कि कवनो अक्षर अइसन नइखे जवन जीवन मंत्र ना होखे, कवनो अइसन पवधा नइखे जवन औषधि ना होखे आ केहू अइसन व्यक्ति नइखे जे योग्य ना होखे। इहँवा खाली योजक के अभाव बा। कवन चीज आ कवन आदमी कहँवा ठीक ढ़ंग से काम कर सकेला। हर चीज आ हर व्यक्ति का गुन के पहचान के ओकरा अनुसार ओहिजा लगा देवेवाला ईमानदार जानकार होखे त ऊ सफल संयोजक, संचालन, समाज के अगुआ, कुशल राजनेता, मजल साहित्यिक संगठनकर्ता, आन्दोलन के नेतृत्वकर्ता आ बैद्य सिद्ध हो सक ता। एही सब गुनन के मिलल-जुलल सफल संगठनकर्ता, साहित्यकार, शिक्षक आ राजनेता रहले बाबू डॉ. प्रभुनाथ सिंह। कब कहाँ का कहे के बा, केतना कहे के बा, केकरा से कहेके बा, कइसे कहे के बा , का लिखे के बा, कइसे लिखे के बा, केकरा से कवन काम कइसे करवा लेवे के बा आ केतनो घुसकउल विद्यार्थी के मगज में कइसे विद्या के बीज डाल देवे के बा उनका खूब मालूम रहे आ उनका जीवन का सफलता के सबसे बड़ राजो इहे रहे। इहे गुन, प्रतिभा आ मेधा उनका के सबका बीचे अजातशत्रु बना के आदरणीय, पूजनीय, वंदनीय आ अनुकरणीय बना दिहल। जवना के परिणाम आज सोझा बा कि उनका दस-एगारह साल गइला के बादो लोग उनका के उनका जनम दिन आ पुण्यतिथि के बड़ी आदर, सम्मान आ सरधा से इयाद करेला आ उनका अभाव के महसूस करत उनका बाकी सपना के पूरा करे खातिर संकल्प लेवेला।
आज ३० मार्च ह। उनकर पुण्यतिथि। आजुवे के दिन २००९ में नई दिल्ली से मुजफ्फरपुर आवे के क्रम में उत्तर प्रदेश के बस्ती रेलवे स्टेशन के आसपास वैशाली एक्सप्रेस के एसी कोच में उनकर हृदय गति रूक गइल रहे आ भोजपुरी-हिन्दी के साहित्य जगत होखे भा विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री-प्रबंधशास्त्री जगत भा सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक जगत, हर ओर हाहाकार मच गइल रहे। केहू का उनका निधन पर विश्वासे ना होत रहे। कुछ लोग बस्ती के ओर गाड़ी दउरावल तो कुछ लोग छपरा धावल। उनका शवयात्रा में अइसन जन सैलाव उमड़ल कि का कहे के । हर राजनीतिक दल के छोट-बड़ नेता-कार्यकर्ता, हिन्दी- भोजपुरी, संस्कृत, अर्थशास्त्र आदि के शिक्षक-छात्र, बड़ बड़ नौकरशाह, आम से खास तक सभे शवयात्रा आ दाह संस्कार में आखिर वे आंख में आंसू लेले जमल रहल। ओइसहीं उनका गांवे मुबारकपुर में सम्पन्न श्राद्ध संस्कार में भी उहे भीड़ रहे आ आजुओ जब उनकर जब कहीं जनम तिथि भा पुण्यतिथि मनावल जाला तो लोग बेबोलवले उनका विषय में कुछ कहे आ कुछ जाने खातिर जुम जाला। एकरे के केहू कवि कहले बा –
” ज़िन्दगी के बाद जीना जिन्दगी का नाम है।
जिन्दगी वह खाक जिसका मौत ही अंजाम है।।”
डॉ. प्रभुनाथ सिंह जइसन बहुमुखी, बहिर्मुखी, बहुवर्णी आ बहुआयामी अक्खड़, फक्कड़, कथक्कड़, बोलक्कड़ आ घुमक्कड़ व्यक्तित्व के सर्वसुलभ सृजनात्मक सार्थक जीवन यात्रा के एक-एक पक्ष के जाने खातिर तनी धैर्य से एह आलेख के पढ़े आ पचावे के पड़ी। राहुल सांकृत्यायन के बाद एह तरह के हरफनमौला इंसान के मिलल असंभव ना त कठिन जरूर बा।
मेधावी छात्र, प्रभावी शिक्षक, उद्भावी साहित्यकार, यथार्थवादी राजनीतिज्ञ आ सिद्ध संगठनकर्ता के रूप मे सुख्यात एह सादगी, साफगोई, सच्चरित्रता, संवादप्रिय, संवेदनशील, सामाजिक-सांस्कृतिक, संगीतप्रेमी का संयोजन आ कार्य संपादन के शैली छन भर में गैर के आपन आ आपन के आत्मीय बना लेत रहे। समय आ समाज के बीच संघर्ष के अभावपूर्ण धारा के रगड़ से साधारण पत्थर से शालिग्राम बनल प्रभुनाथ बाबू अपना जीवन्त जीवन के रचइता खुद रहलें। उनका हाजिरजवाबी आ ठहाका के गूंज से मनहूसो मनई में आनंद के तरंग उठ जात रहे। उनका के जानेवाला उनका के अंगरेजी में ‘ इंस्टिट्यूशन बिल्डर ‘ आ ‘प्रेजेन्सस्पिक्स’ कहते रहे। मतलब उनकर जीवन रचनात्मक संगठन, शैक्षिक संस्थान आदि के निर्माण खातिर समर्पित रहे। जहाँ पहुँच जास उनकर उपस्थिति बोलत रहे।
डॉ. साहेब के जनम 2 मई, 1940 ई. के सारन बिहार के एकमा के नजदीक मुबारकपुर गोला गांव में माई दुलारी देवी आ बाबूजी लक्ष्मी नारायण सिंह के सामान्य परिवार में भइल रहे। उनका घरे के आर्थिक हालत अइसन ना रहे के जे उनका के ढ़ंग के ढ़ंग से शिक्षा दिला सकत रहे। जइसे-तइसे मिडिल इस्कूल पास कइला के बाद उनकर नांव एकमा के अलख नारायण सिंह उच्च विद्यालय मे लिखाइल। पढ़े , भाषण देवे आ गीत गावे में इनका बचपने से महारत हासिल रहे। कुछे दिन में ई इस्कूल के संवेदनशील शिक्षक बैकुंठ बाबू के नजर में आ गइलन। प्रतिभा आ विनम्रता के फल ई भइल कि इनका छात्रवृत्ति मिले लागल। इस्कूल के परीक्षा फीस आदि माफ हो जाए। गुरु किरपा से किताब, कापी आ ट्यूशन मिलत गइल। सन् 1955 ई . में प्रथम श्रेणी से मैट्रिक पास कइला के बाद सन् 1955 ई. में इंटर आ बी.ए. करे खातिर राजेंद्र कालेज, छपरा में नांव लिखाइल। इहां इनका मेधा आ गायकी सहित साहित्यिक रूचि पर भोजपुरी प्रान प्राचार्य आ फिरंगिया जइसन कालजयी काव्य के कवि मनोरंजन प्रसाद सिन्हा के दृष्टि गइल आ ऊ इनका पर अस कृपालु भइलें कि इहँवों इनका हर आर्थिक आ शैक्षिक समस्या के समाधान हो गइल। कालेज का हर साहित्यिक, सांस्कृतिक आ शैक्षिक संगोष्ठी आ वाद-विवाद-संवाद का कार्यक्रम में बढ़चढ़ के हिस्सा लेवे लगलें। मनोरंजन बाबू के प्रिय भइला का वजह से आउर प्राध्यापक लोग के भी भरपूर सहयोग मिलत गइल। सन्1958ई. में कालेज के पत्रिका ‘राका’ (राजेन्द्र कालेज) में इनकर पहिल भोजपुरी कविता-गीत ‘झिहिर झिहिर झिसी का बीचे लहर लहर पुरवइया’ छपल आ इनका कवि रूप से छपरा के लोग परिचित भइल। ओकरा बाद ई कविता, कहानी , निबंध आ संस्मरण आदि लिखे लगलें। एह दरम्यान ऊ ट्यूशन करके अपना पढ़ाई के खरचा जुटा लेस। सन् 1959 ई. में बी.ए. कइला के बाद ई कुछ दिन ई गौतम ऋषि उच्च विद्यालय, रिविलगंज, सारन में अर्थशास्त्र के शिक्षक के रूप में पढ़वलें। जहां इनका भोजपुरी के कवि-गजलकार सतीश्वर सहाय वर्मा सतीश शिक्षक मित्र के रूप में मिल गइलें। दूनों जाना के लयदारी इस्कूल का जवार में चर्चा के विषय बन गइल रहे। एही बीच सन् 1959 ई. में इनकर नांव पटना विश्वविद्यालय के एम.ए. में लिखा गइल। जहां उनका रामेश्वर सिंह काश्यप जी उर्फ लोहा सिंह जइसन हिन्दी-भोजपुरी के नामचीन साहित्यकार, निबंधकार, नाटककार प्राध्यापक से जुड़े के सुअवसर भेंटाइल। एह तरह से प्रभुनाथ सिंह के भोजपुरी के सेवा में लागे के प्रेरणा बैकुंठ बाबू, मनोरंजन बाबू, सतीश जी आ काश्यप जी जइसन विभूतियन से मिलत चल गइल आ इनकर व्यक्तित्व बहुमुखी आ बहुआयामी आकार-विस्तार लेत चल गइल।
सन् 1962 ई.में पटना विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए.कइला के बाद डॉ. साहेब कुछ दिन क्रमवार गौतम ऋषि उच्च विद्यालय, रिविलगंज, राजेन्द्र कालेज, छपरा आ बाढ़ कालेज, दानापुर में शिक्षक-व्याख्याता के रूप में योगदान दिहलें। एह बीच कुछ दिन मेडिकल रिप्रजेंटेटिभो के काम करके आर्थिक तंगी के तबाह कइलें। एकरा बाद सन् 1963ई. में इनकर बहाली अर्थशास्त्र के व्याख्याता के रूप में बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के ओह ऐतिहासिक लंगट सिंह कालेज में हो गइल जहाँ देश के पहिल राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, स्वतंत्रता सेनानी आ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष जे.वी. कृपलानी शिक्षक रह चुकल रहस।चूकि बड़ परिवार के भाड़ माथे रहे आ सैलरी कम मिले एह से ई कुछ दिन एगो दवा के दोकानों खोल के पार्ट टाइम में चलावस। जवना में इनका सफलता ना मिलल आ दोकान बंद करेके पड़ल। एही दरम्यान इहंवो इनका भोजपुरी कवि आ दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक डाक्टर रिपुसूदन श्रीवास्तव से मिताई हो गइल। ओह घरी भोजपुरी आंदोलन के भामाशाह माने जाए वाला प्रगतिशील कवि सिपाही सिंह श्रीमंत मुजफ्फरपुरे में शिक्षा विभाग के पदाधिकारी रहलें। सभे मिलजुलके भोजपुरी के कार्यक्रम कइल करावल शुरू कइल। तत्कालीन कुलपति सुख्यात शिक्षाविद् डॉ. तारा भूषण मुखर्जी, प्रतिकुलपति डाक्टर ललन प्रसाद सिन्हा, सीनेटर डा.भोला प्रसाद सिंह आदि के सहयोग आ प्रेरणा से सन् 1970-71ई. में विश्वविद्यालय के लंगट सिंह कालेज में भोजपुरी के पढ़ाई शुरू हो गइल। प्रभुनाथ बाबू आ रिपुसूदन बाबू अपना विषय के वर्ग कइला के बाद भोजपुरी विभाग में पढ़ावे लोग। पं. गणेश चौबे जी किहां से भोजपुरी के किताब छंटा के आइल। भोजपुरी के पाठ्यक्रम बनल। चौबे जी, डॉक्टर कृष्णदेव उपाध्याय आदि विद्वान पाठ्यक्रम समिति के सदस्य रहलें। एही बीच सन् 1972 ई. में बिहार विधानसभा के चुनाव आ गइल आ उनकर विभागीय वरीय प्रध्यापक मित्र डाक्टर जगन्नाथ मिश्र जी उनका के सारन जिला के तरैया विधानसभा से चुनाव लड़े खातिर कांग्रेस के टिकट दे दिहलें। ई राजनीति के क्षेत्र उनका खातिर एकदम से अंजान रहे। बाकिर उनकर विनम्रता, साफगोई, वाक्पटुता आ ईश्वरीय कृपा उनका के विजय दिलवलस आ ई बिहार विधानसभा पहुँच गइलें। बाकिर सन् 1977ई. के जनता लहर में ई चुनाव हार गइलें। इनका अनुसार इनकर चुनाव हारल उनका ला वरदान साबित भइल । एही बीच ई मैनेजेरियल प्रोब्लेम्स ऑफ पब्लिक इंटरप्राइजेज इन इंडिया विथ स्पेशल रेफरेन्ट्स एच. ई. सी. लिमिटेड, राँची विषय पर शोधकार्य करके पी-एच. डी. के उपाधि अर्जित कर लिहलन।
सन् 1980 से01985 ई. तक फेर तरैया विधानसभा से चुनाव जीत के कई गो महत्वपूर्ण काम कइलें। एह बीच डाक्टर जगन्नाथ मिश्र जी का मुख्यमंत्रित्व काल में योजना, राजस्व आ वित्त मंत्री स्वतंत्र प्रभार में रहके कई गैर सरकारी इस्कूल-कालेजन के सरकारीकरण करववलें आ शिक्षक लोग के सम्मानजनक सैलरी आ पदोन्नति के मार्ग मुख्यमंत्री द्वारा प्रशस्त करववलें। जिला-जवार के के कहो बिहार का हर क्षेत्र के शिक्षित बेरोजगारन के योग्यता के हिसाब से नौकरी दिलवलें। छपरा हवाई अड्डा बनवावे आ ओकर पक्कीकरण में उनकर लमहर हाथ रहे। अपना विधायकी आ मंत्रित्व काल में कई विद्यालय आ महाविद्यालय के स्थापना करवावे आ खोलवावे में आपन बहुमूल्य योगदान दिहलें। जइसे- जनता कालेज/राजा सिंह कालेज, सिवान, कुँवर सिंह कालेज, लहेरियासराय, नंदलाल सिंह कालेज, दाउदपुर, डाक्टर रामबिहारी सिंह उच्च विद्यालय, बिसुनपुर मढ़ौरा, प्रभुनाथ जमादार उच्च विद्यालय, पोखरैरा,डा. पी.एन. सिंह इंटर आ डिग्री कालेज, छपरा, फिजिकल टीचर्स ट्रेनिंग कालेज, खगौल आदि।
डाक्टर प्रभुनाथ सिंह अपना जीवन में कई शैक्षिक-शैक्षणिक संस्थानन में कई गो प्रशासनिक पद पर कुशलता से आपन दायित्व निभवलें ;जइसे – विभागाध्यक्ष, विश्वविद्यालय अर्थशास्त्र विभाग आ डीन, समाजविज्ञान संकाय, बी.आर.ए.बी.यू. मुजफ्फरपुर, निदेशक, यू.जी.सी. सम्पोषित एकेडमिक स्टाफ कालेज, बी.आर. ए. बी.यू.,मुजफ्फरपुर, प्रोफेसर आफ मैनेजमेंट, बी. आई. टी. मेसरा राँची, रेक्टर, इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी फार ह्यूमैन ट्रांसफोरमेंशन, रायपुर राँची, प्रोफेसर आ कार्यपालक निदेशक, दिल्ली इस्कूल आफ प्रोफेशनल स्टडीज एंड रिसर्च रोहिणी, दिल्ली आदि।
डाक्टर साहेब के मेम्बरशिप आफ प्रोफेशनल बाडीज आ एकरा से सम्बन्धित कुछ धारित पदन के नाम बा – सदस्य कार्यकारिणी, इंडियन कामर्स एसोसिएशन-1984-1996, कार्यपालक उपाध्यक्ष, इंडियन कामर्स एसोसिएशन-1998-2000, प्रधान सचिव, ऐप्सो, बिहार इकाई, विश्व शांति संगठन, अध्यक्ष, इकानामिक एसोसिएशन आफ बिहार एंड झारखंड-धनबाद सम्मेलन-2004 आदि।
पूर्व सोवियत संघ, अल्जीरिया, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी, नेपाल आदि देसन में आपन व्याख्यान दे चुकल डाक्टर साहेब के लगभग तीन चार दर्जन शोधपूर्ण आलेख दस-बिदेस का स्तरीय जर्नल आ मैगजीन में प्रकाशित भइल आ पुरस्कृत भइल।
भोजपुरी भासा-साहित्य के विकास उनका योगदान के जनावे का पहिले उनका अन्य विषय के प्रकाशित कुछ पुस्तकन के नाम बतावे के चाहत बानी – स्टडीज इन इकानामिक प्लानिंग सह लेखन, बुकलैंड प्रा. लि. कोलकाता( 1965), ग्लिम्प्सेज आफ इकानामिक प्लानिंग एंड पालिसीज इन इंडिया, जानकी प्रकाशन, दिल्ली (1981), मैनेजेरियल प्राब्लेम्स आफ पब्लिक इंटरप्राइजेज इन इंडिया, जानकी प्रकाशन, दिल्ली(1982), लीडरशिप एंड मैनेजमेंट इफेक्टिवनेश सह लेखन दीप एंड दीप पब्लिसिंग हाउस, राजौरी गार्डेन, नई दिल्ली (1998), चैलेंजेज टू इंडियन कामर्स एंड बिजिनेस सम्पादित, दीप एंड दीप पब्लिसिंग हाउस, राजौरी गार्डेन, नई दिल्ली( 1998), मास्टर गाइड, यू.जी.सी. नेट/स्लेट मैनेजमेंट सह लेखन रमेश पब्लिसिंग हाउस, नई दिल्ली( 2006), इनसाइक्लोपीडिया आफ इंडियन इकानामी सम्पादित, दीप एंड दीप पब्लिसिंग हाउस राजौरी गार्डेन, नई दिल्ली( 2007) आदि।
एह तमाम शैक्षिक कार्य, शोध आलेख आ पुस्तक खातिर उनका अनेक बार सम्मान आ पुरस्कार मिलल रहे जइसे – प्रबंधशास्त्र खातिर सर्वोत्कृष्ट पुस्तक सम्मान- अखिल भारतीय प्रबंध सम्मेलन, पटना(-1981), मैन आफ द इयर सम्मान- अमेरिकन बायोग्राफिक इंस्टीट्यूट रालेध, अमेरिका (1995), सर्वोतम पूर्व छात्र सम्मान (2004 )राजेन्द्र कालेज छपरा, नागरिक अभिनंदन सम्मान( 9/2/2009) गोरखपुर आदि।
अब रहल भोजपुरी लेखन आ आंदोलन मे उनका योगदान आ सम्मान के बात त ऊ एह क्षेत्र में स्वांतःसुखाय अनवरत लागल रहत रहस। जहाँ तक भोजपुरी आंदोलन में अवदान के सवाल बा त सारन जिला भोजपुरी साहित्य सम्मेलन , छपरा, भोजपुरी भारती, जनता बाजार ढ़ोढ़ स्थान, अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, पटना, भारतीय भोजपुरी साहित्य परिषद्, मुजफ्फरपुर चाहे विश्व भोजपुरी सम्मेलन नई दिल्ली के कुल्ह दू दर्जन अधिवेशन, संगोष्ठी आ परिचर्चा आदि के आयोजक, संयोजक, संचालक आ संस्थापक आदि रहलें। इनका नेतृत्व में होखे वाला अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अमनौर, मुबारकपुर, छपरा, राँची, पटना, बोकारो आदि आ भारतीय भोजपुरी साहित्य परिषद् के मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, आमी आदि अधिवेशन के जोड़ा अबहीं ले केहू ना लगा सकल।
इनके प्रभाव के परिणाम रहे की बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर, जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा, कुँवर सिंह विश्वविद्यालय आरा, संससकृत विश्वविद्यालय दरभंगा, मगध विश्वविद्यालय गया, पटना विश्वविद्यालय पटना, नालंदा खुला विश्वविद्यालय पटना आ इन्द्रिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय नई दिल्ली में भोजपुरी के अध्ययन-अध्यापन शुरू भइल रहे। जवना में से कुछ विश्वविद्यालय में अबहीं अध्ययन-अध्यापन बाधित बा।जदि आज ऊ रहितें त ई दिन ना देखे के पड़ित।
उनका साथ बितावल रचनात्मक छन के बहुते संस्मरण मानस पर उभर रहल बा। जदि सबके जोड़ल जाए त एगो मुकम्मल ग्रंथ लिखा सक ता। जवन हमार भविष्य के योजना बा। भोजपुरी के प्रायः हर स्तरीय पत्र पत्रिकन में उनकर कविता, गीत गजल, कहानी, निबंध संस्मरण आ पुस्तक समीक्षा आदि बिखड़ल पड़ल बा।जवना के समेटल बहुत बड़ शोधपरक आ जरूरी काम बा। ऊ कई भोजपुरी पुस्तक – पत्रिकन के संपादित कइले बाड़न जइसे – बी. आर.ए. बी. यू. भोजपुरी पद्य संग्रह, भारतीय भोजपुरी साहित्य परिषद् पत्रिका, भोजपुरिया संसार, भैरवी आदि।
उनकर चार गो मौलिक भोजपुरी पुस्तक प्रकाशित बा – ई हमार गीत भोजपुरी कविता, गीत, गजल, मुक्तक संग्रह (1984) ,गाँधी जी के बकरी भोजपुरी के पहिल गद्यात्मक व्यंग्य साहित्य संग्रह (1988) ,हमार गाँव हमार घर (भोजपुरी के कहानी, निबंध, संस्मरण संग्रह) (1998) आ पड़ाव भोजपुरी के कहानी आ ललित निबंध संग्रह (2004)। अइसे त मुक्तेश्वर तिवारी बेसुध चतुरी चाचा की चटपटी चिट्ठियां करके बनारस के आज अखबार में भोजपुरी के धारावाहिक गद्य प्रधान व्यंग्य लिखस। ओइसहीं प्रभुनाथ बाबू राँची एक्सप्रेस हिन्दी अखबार में भोजपुरी में समसामयिक समस्यन के लेके गद्य व्यंग्य धारावाहिक लिखीं जेकर नाम रहे “गाँधी जी के बकरी “। जवन बाद में पुस्तक रूप में पुस्तक सहयोग, डी एन दास रोड पटना से (1988 )में छपल। एकरा में बाइस गो मौलिक व्यंग्य आलेख बा। डॉ शंकर मुनि राम गड़बड़ अपना शोधप्रबंध में एकरा के भोजपुरी के पहिला गद्यात्मक व्यंग्यालेख के पुस्तक प्रमाणित करत प्रभुनाथ बाबू के पहिले गद्य व्यंग्यकार साबित किले बाड़न। भोजपुरी आंदोलन आ लेखन में महत्त्वपूर्ण योगदान खातिर उनका के भारतीय भोजपुरी परिषद्, लखनऊ के ओर से भोजपुरी भास्कर समयमान, पूर्वांचल एकता मंच दिल्ली से भोजपुरी गौरव सम्मान-2004, गोरखपुर के साहित्यिक समाज के ओर से नागरिक अभिनंदन सम्मान-9/2/2009 आदि मिलल रहे। आज कई गो राष्ट्रीय आ अन्तर्राष्ट्रीय संगठन उनका नाम पर सम्मान देके भोजपुरी सेवी लोग के हर साल सम्मानित करेला। अबहीं तक उनका पर पी-एच. डी. के उपाधि खातिर भोजपुरी में दू गो शोध प्रबंध लिखा चुकल बा। डा. ओम प्रकाश सिंह के शोध ग्रंथ ” भोजपुरी आंदोलन के प्रेरक व्यक्तित्व डॉ. प्रभुनाथ सिंह ” बहुते बहुमूल्य आ पठनीय पुस्तक बा। एह सब के बावजूद जब तक भोजपुरी के भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में स्थान ना मिल जाई। प्राथमिक स्तर से लेके स्नातकोत्तर स्तर तक एकरा पढ़ाई के समुचित बेवस्था ना हो जाई। जब वे यू पी एस सी, बी पी एस सी आदि परीक्षा खातिर भोजपुरी एगो विषय ना बन जाई तब तक ओह महानायक के सपना अधूरा रही जवना के पूरा करावल आज के भोजपुरी के साहित्यकार आ जन प्रतिनिधि लोग के परम कर्त्तव्य बा।
प्रस्तुत आलेख सुविख्यात लेखक अउरी कवि डॉ जयकांत सिंह ‘जय’ के लिखल ह। जयकांत जी एसोसिएट प्रोफेसर सह अध्यक्ष, भोजपुरी विभाग, लंगट सिंह महाविद्यालय, बिहार में कार्यरत बानीं अउरी विभिन्न सांस्कृतिक अउरी साहित्यिक गतिविधि में सक्रिय योगदान देत रहेनीं।

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महेंद्र मिश्र : ऊ क्रांतिकारी-गायक जेकरा खातिर तवायफ सब आपन गहना उतार देहल https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/mahendra-mishra-purbi-samrat-3297 https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/mahendra-mishra-purbi-samrat-3297#respond Mon, 16 Mar 2020 13:26:38 +0000 https://www.gahanalive.com/?p=3297 भोजपुरी साहित्य में गायकी के जब-जब चर्चा होला महेंद्र मिश्र के पूरबी सामने खड़ा हो जाला. मानल जाला कि महेंद्र मिश्र जइसन केहू दूजा न, भईल न होई. महेंद्र मिश्र के जन्म छपरा के मिश्रवलिया में आजे के दिन 16 मार्च 1886 के भईल. माटी के लाल महेंद्र मिश्र के बारे में मैथिली भोजपुरी अकदमी […]

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भोजपुरी साहित्य में गायकी के जब-जब चर्चा होला महेंद्र मिश्र के पूरबी सामने खड़ा हो जाला. मानल जाला कि महेंद्र मिश्र जइसन केहू दूजा न, भईल न होई. महेंद्र मिश्र के जन्म छपरा के मिश्रवलिया में आजे के दिन 16 मार्च 1886 के भईल. माटी के लाल महेंद्र मिश्र के बारे में मैथिली भोजपुरी अकदमी के गवर्निंग बॉडी मेम्बर अउरी दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर मुन्ना पाण्डेय जी से गहना टीम के बातचीत के संक्षिप्त ब्यौरा प्रस्तुत बा.

घर, परिवार अउरी गायक के उभार

महेंद्र मिश्र बचपने से पहलवानी, घुड़सवारी, गीत, संगीत में तेज रहनीं. पुरबी सम्राट महेंदर मिसिरजी के बिआह रुपरेखा देवी से भईल रहे जिनका से हिकायत मिसिर के नाव से एगो लईका भी भईल, बाकी घर गृहस्थी मे मन ना लागला के कारन महेन्दर मिसिर जी हर तरह से गीत संगीत कीर्तन गवनई मे जुटि गईनी. बाबुजी के स्वर्ग सिधरला के बाद जमीदार हलिवंत सहाय जी से जब ढेर नजदीकी भईल त उहा खातिर मुजफ्फरपुर के एगो गावे वाली के बेटी ढेलाबाई के अपहरण कई के सहाय जी के लगे चहुंपा देहनी. बाद मे एह बात के बहुत दुख पहुंचल आ पश्चाताप भी कईनी संगे संगे सहाय जी के गइला के बाद, ढेला बाई के हक दियावे खातिर महेन्दर मिसिर जी कवनो कसर बाकी ना रखनी!

महेंद्र मिसिर के विरासत में संस्कृत के ज्ञान अउरी आसपास के समाज में अभाव के जीवन मिलल जेमे ऊ अंत समय तक भाव भरत रह गइनीं. एही से उहाँ के रचना में देशानुराग से लेके भक्ति, श्रृंगार अउरी वियोग के बहुत दृश्य मिलेला.

शोहरत के आलम ई कि भारत ही ना बल्कि दुनिया के जवन जवन हिस्सा (फिजी, मारिशस, सूरीनाम, नीदरलैंड, त्रिनिदाद, ब्रिटिश गुयाना) में गिरमिटिया लोग गईल, महेंद्र मिश्र के गायकी उनके सफ़र अउरी आपन माटी के पाथेय बनके साथे गईल. साहित्य संगीत के इतिहास में विरला ही केहू होई जे एक साथ शास्त्रीय अउरी लोक संगीत पर गायन-वादन में दक्षता राखत होखे, अपना आसपास के राजनीतिक सामाजिक हलचल में सक्रिय भागीदारी राखत होखे अउरी पहलवानी के शौक भी रखता होखे. महेंद्र मिश्र के जीवन में रूमानियत के साथे भक्ति के भी साहचर्य रहल. एह कवि के मित्रभाव अइसन रहल कि अपना जमींदार मित्र हलिवंत सहाय के प्रेम खातिर मुजफ्फरपुर से ढेलाबाई के अपहरण करके मित्र के लगे पहुंचा देह्नीं.

हालांकि आपन एह काम के पश्चाताप स्वरुप महेंदर मिसिर ढेलाबाई के साथ अंत तक निभवनी. हलिवंत सहाय के गुजरला के बाद भी उनुके जमींदारी के मामला के देखरेख करत रहनीं. महेंद्र मिश्र के जीवन के एतना रंग बा कि रउआ जेतने देखेम ओतने लागी कि अलग-अलग  छवि निकल के सामने आ रहल बा जइसे कवनो फिलिम चलत हो. पहलवानी के कसल, लम्बा-चौड़ा बदन, चमकता माथा, देह पर सिल्क के  कुर्ता, गर्दन में सोना के चेन अउरी  मुँह में पान के गिलौरी.. अइसन आकर्षक रहल महेंद्र मिश्र के  व्यक्तित्व.

स्वतंत्रता संग्राम अउरी  महेंद्र मिश्र

महेंद्र मिश्र के समय गाँधी के उदय के समय ह. बिहार स्वतंत्रता सेनानी संघ के अध्यक्ष विश्वनाथ सिंह अउरी एह इलाके के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी श्री तापसी सिंह आपन लेख में दर्ज कइले बानीं कि महेंद्र मिश्र स्वतंत्रता सेनानी लोग के आर्थिक मदद करत रहनीं. एह सन्दर्भ में अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मलेन के चौदहवा अधिवेशन, मुबारकपुर, सारण ‘इयाद के दरपन में’ देखल जा सकsता. सारण के इलाके के कई स्वतंत्रता सेनानी अउरी कालांतर में सांसद (बाबू रामशेखर सिंह और श्री दईब दयाल सिंह) भी ई बात कहले बानीं कि महेंद्र मिश्र के घर स्वंतंत्रता संग्राम के सिपाही लोग के गुप्त अड्डा रहल. उनुका घर के बैठक में संगीत अउरी गीत गवनई के अलावा राजनीतिक चर्चा भी खूब होखे. उनके गाँव के अनेक समकालीन बुजुर्ग लोग भी एह बात के पुष्टि कइले बा कि महेंद्र मिश्र स्वाधीनता आन्दोलन के क्रांतिकारी सब के खुला हाथ से सहायता करत रहनीं. आखिर उनुका हिस्सा भी त ऊ दर्द रहल कि:

हमरा नीको ना लागे राम गोरन के करनी

रुपया ले गईले,पईसा ले गईलें,ले सारा गिन्नी

ओकरा बदला में दे गईले ढल्ली के दुअन्नी

पूरबी सम्राट महेंद्र मिश्र के सब रचना अपार लोकप्रियता के सोपान तक पहुँचल. भोजपुरी अंचल टूट के उनके गीतन के अपना दिल में जगह देहल लेकिन साहित्य-इतिहासकारन के नजर में महेंद्र मिश्र अछूत ही बनल रहनीं. केहू उनपर ढंग से बात करे के कोशिश ना कइल. अलबता एकाध पैराग्राफ में निपटावे के  कुछ सूचनात्मक कोशिश जरुर भइल. रामनाथ पाण्डेय लिखित भोजपुरी उपन्यास ‘महेंदर मिसिर’ अउरी  पाण्डेय कपिल रचित उपन्यास ‘फूलसुंघी’, पंडित जगन्नाथ के ‘पूरबी पुरोधा’ अउरी जौहर सफियाबादी द्वारा लिखित ‘पूरबी के धाह’ लिखल गइल बा. प्रसिद्ध नाटककार रवीन्द्र भारती ‘कंपनी उस्ताद’ नाम से  नाटक लिखले बानी जेके वरिष्ठ रंगकर्मी संजय उपाध्याय खूब खेलले बानी.

 

 नकली नोट के छपाई के किस्सा अउरी गोपीचंद जासूस

महेंद्र मिश्र कलकत्ता खूब आईं-जाईं. तब कलकता न केवल बिहारी मजदूर के पलायन के सबसे बड़ा केंद्र बल्कि राजनीतिक गतिविधि के भी सबसे उर्वर जमीन रहे. कलकता में उनकर परिचय एगो अंग्रेज से भइल जे उनुकर गायकी के मुरीद रहे. ऊहे अँगरेज़ लन्दन लौटे के क्रम में नकली नोट छापे के मशीन महेंद्र मिश्र के देहल जेके लेके ऊ गाँव चली अइनी अउरी अपना भाई सब के साथे मिलके नकली नोट के  छपाई शुरू कर देहनी. सारण इलाके में आपन छापल नकली नोटन से महेंदर मिसिर अंग्रेजी सत्ता के अर्थव्यवस्था के रीढ़ तूरल शुरू कर देहनी.

 

महेंद्र मिश्र पर पहला उपन्यास लिखे वाला रामनाथ पाण्डेय अपना उपन्यास ‘महेंदर मिसिर’ में लिखले बानी कि ‘महेंद्र मिश्र अपना सुख-स्वार्थ खातिर ना बल्कि शोषक ब्रिटिश हुकूमत के अर्थव्यवस्था के धराशायी करे खातिर अउरी अंग्रेजी अर्थनीति के विरोध करे के उद्देश्य से नोट छापत रहनीं. एह बात के भनक लागते अंग्रेजी सरकार आपन सीआईडी जटाधारी प्रसाद अउरी सुरेन्द्र लाल घोष के नेतृत्व में अपना जासूसी तंत्र के सक्रिय कर देहलस अउरी आपन जासूस हर तरफ लगा देहलस. सुरेन्द्रलाल घोष तीन साल तक महेंद्र मिश्र के लगे गोपीचंद नामक नौकर बनकर रहलन अउरी उनके खिलाफ तमाम जानकारी इकट्ठा कइलन.

 

तीन साल बाद 16 अप्रैल 1924 के गोपीचंद के इशारा पर अंग्रेज सिपाही महेंद्र मिश्र के उनुका भाई लोग के साथे पकड़ लेहल. गोपीचंद के जासूसी अउरी गद्दारी खातिर महेंद्र मिश्र एगो गीत गोपीचंद के देखत गवनीं कि –

पाकल पाकल पानवा खिअवले गोपीचनवा पिरितिया लगा के ना,

हंसी हंसी पानवा खिअवले गोपीचानवा पिरितिया लगा के ना…

मोहे भेजले जेहलखानवा रे पिरितिया लगा के ना…

गोपीचंद जासूस जब ई सुनलन त उहो उदास हो गइलन. उहो मिश्र जी के प्रभाव में तुकबंदी सीख गईल रहलन एही से गाकर उत्तर देहलन कि  –

नोटवा जे छापि छपि गिनिया भजवलs ए महेन्दर मिसिर

ब्रिटिस के कईलs हलकान ए महेन्दर मिसिर

सगरे जहानवा मे कईले बाडs नाम ए महेन्दर मिसिर

पड़ल बा पुलिसिया से काम ए महेन्दर मिसिर

सुरेश मिश्र एह घटनाक्रम के बारे में लिखले बाडन कि – ‘एक दिन किसी अंग्रेज अफसर ने जो खूब भोजपुरी और बांग्ला भी समझता था,इनको ‘देशवाली’ समाज में गाते देखा. उसने इनको नृत्य-गीत के एक विशेष स्थान पर बुलवाया. ये गए. बातें हुईं.वह अँगरेज़ उनसे बहुत प्रभावित हुआ. इनके कवि की विवशता,हृदय का हाहाकार,ढेलाबाई के दुखमय जीवन की कथा,घर परिवार की खस्ताहाली तथा राष्ट्र के लिए कुछ करने की ईमानदार तड़प देखकर उसने इनसे कहा- तुम्हारे भीतर कुछ ईमानदार कोशिशें हैं. हम लन्दन जा रहे हैं. नोट छापने की यह मशीन लो और मुझसे दो-चार दिन काम सीख लो. यह सब घटनाएँ 1915-1920 के आस-पास की हैं.’

पटना उच्च न्यायालय में महेंद्र मिश्र के केस के पैरवी विप्लवी हेमचन्द्र मिश्र अउरी मशहूर स्वतंत्रता सेनानी चितरंजन दास कइनीं. महेंद्र मिश्र के लोकप्रियता के ई आलम रहे कि उनके गिरफ्तारी के खबर मिलते बनारस से कलकत्ता तक के तवायफ सब, विशेषकर ढेलाबाई, विद्याधरी बाई, केशरबाई आदि आपन-आपन गहना उतार के अधिकारी सब के देवल शुरू कर दिहल लोग कि गहना लेके  मिश्र जी के छोड़ देहल जाव. सुनवाई तीन महीना तक चलल. लागत रहे कि मिश्र जी छूट जाएम  लेकिन अइसन ना भईल अउरी मिश्र जी आपन अपराध कबूल कर लेह्नीं. महेंद्र मिश्र के दस वर्ष के सजा सुना के बक्सर जेल भेज देहल गइल. महेंद्र मिश्र के भीतर के कवि अउरी गायक जेल में जल्दी ही सबके आपन प्रशंसक बना लेहल. उनके संगीत अउरी कविताई पर मुग्ध होके तत्कालीन जेलर उनुके जेल से निकालके अपना घर पर रख लेह्लन. ऊहें महेंद्र मिश्र जेलर के बीवी बच्चनके भजन अउरी कविता सुनावे अउरी सत्संग करे लगनीं. ओही जगह पर महेंद्र मिश्र भोजपुरी के प्रथम महाकाव्य अउरी आपन काव्य के गौरव-ग्रन्थ “अपूर्व रामायण” रचनीं. मुख्य रूप से पूरबी खातिर  मशहूर महेंद्र मिश्र कई फुटकर रचना के अलावा महेन्द्र मंजरी, महेन्द्र बिनोद, महेन्द्र मयंक, भीष्म प्रतिज्ञा, कृष्ण गीतावली, महेन्द्र प्रभाकर, महेन्द्र रत्नावली , महेन्द्र चन्द्रिका, महेन्द्र कवितावली आदि कई रचना के सर्जना कइनीं.

 प्रेम के पीर अउरी प्रेम में मुक्ति के कविगायक

ई ज्ञात तथ्य बा कि कलकत्ता, बनारस, मुजफ्फरपुर आदि जगह के कई गो तवायफ महेंद्र मिश्र के आपन गुरु माने. इहाँ के लिखल कई गीतन के कोठा पर सजल महफ़िल में गावल जाए. पूरबी के प्रसिद्धि महेंद्र मिश्र से ही भइल चूँकि मिश्र जी एक तरफ त हारमोनियम, तबला, झाल, पखाउज, मृदंग, बांसुरी पर अद्भुत अधिकार राखत रहनीं त दोसरा तरफ ठुमरी टप्पा, गजल, कजरी, दादरा, खेमटा जइसन गायकी अउरी अन्य कई शास्त्रीय शैली पर भी जबरदस्त अधिकार रहे. एही कारण उनके हर रचना के सांगीतिक पक्ष एतना मजबूत रहे कि जुबान पर आसानी से चढ़ जाए अउरी तवायफ सब उनके गीतन के खूब गावे. उनके पूरबी गीतन में बियोग के साथ-साथ गहरा रूमानियत के अहसास भी दिखेला जे अन्य भोजपुरी कविता में कम पावल जाला .

अंगुरी मे डंसले बिआ नगिनिया, ए ननदी दिअवा जरा दे/ सासु मोरा मारे रामा बांस के छिउंकिया, सुसुकति पनिया के जाय, पानी भरे जात रहनी पकवा इनरवा, बनवारी हो लागी गईले ठग बटमार / आधि आधि रतिया के पिहके पपीहरा, बैरनिया भईली ना, मोरे अंखिया के निनिया बैरनिया भईली ना / पिया मोरे गईले सखी पुरबी बनिजिया, से दे के गईले ना, एगो सुनगा खेलवना से दे के गईले ना, जइसन असंख्य गीत में बसल विरह अउरी प्रेम के भाव पत्थर के भी पिघलावे के क्षमता राखेला.

कहल त ईहो जाला कि महेंद्र मिश्र के गीतन में जवन दर्द बा ऊ ढेलाबाई अउरी अन्य कईगो तवायफ लोगन के मजबूरी, दुख:दर्द के वजह से बा. ढेलाबाई से महेंद्र मिश्र के मित्रता के कई पाठ लोक प्रचलन में बा लेकिन एक स्तर पर ई घनानंद के प्रेम के पीर जइसन बा. एही से महेंद्र मिश्र के लगे प्रेम में विरह के वेदना के तीव्रता एतना ज्यादा बा कि दगादार से यारी निभावे के हद तक चल जाला. ढेलाबाई अउरी महेंद्र मिश्र के बीच के नेह-बंध के एह तरे समझल जा सकेला. प्रेम में मुक्ति के जवन स्वर महेंद्र के बा, ऊ लोकसाहित्य में विरले बा. कहल जाला कि उनके गायकी से पत्थर पिघल जात रहे, सारण से गुजरे वाली गंगा अउरी नारायणी के धार मंद पड़ जाए. अइसन  गायकी रहे महेंद्र मिश्र के, लेकिन अफ़सोस भोजपुरी के ई नायब हीरा अपना जाए के सात दशक में किंवदंती अउरी मिथक सरीखा बना देहल गइलन. हमनीं के अपना लोक के इतिहास संरक्षित करे में हमेशा उपेक्षा के भाव रखेनी जां. हमनीं लगे राजा अउरी शासक लोग के इतिहास त बा लेकिन लोक ह्रदय-सम्राट के ना. महेंद्र मिश्र अइसनके उपेक्षा के मारल कलाकार हई. 16 मार्च 1886 से शुरू भईल ई यात्रा 26 अक्टुबर 1946 के ढेलाबाई के कोठा के पास बनल शिवमंदिर में समाप्त हो गइल अउरी पूरबी के सम्राट दुनिया के अलविदा कह देह्नीं. महेन्द्र मिश्र के दिल त बहुत बड़का रहल लेकिन उनुका खातिर दुनिया छोट पड गइल. उहाँ के अपना प्रेम गीत में दगादार से यारी अउरी प्रेम में स्वतंत्रता के भाव विशेषकर स्त्री के पक्ष में पैदा कईनीं. भोजपुरी के लगभग सभी गायक-गायिका लोग महेंद्र मिश्र के गीतन के आपन आवाज़ देले बा. कहल जाला कि होत होई लोग कईगो कवि-गायक बाकिर महेंद्र मिश्र जइसन केहू दूजा न, भईल न होई.

आज ओही महेंद्र मिश्र के जन्मदिन ह.

 

 

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महेंदर बाबा के भक्तिगीत https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/mahender-misir-bhaktigeet-3286 https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/mahender-misir-bhaktigeet-3286#respond Mon, 16 Mar 2020 09:13:33 +0000 https://www.gahanalive.com/?p=3286 आज पुरबी के जनक महेंदर मिसिर के जन्मदिवस ह. महेंदर बाबा त हर राग अउरी मिजाज के गीत लिखले गवले बानीं. इहाँ के लिखल अनेक भक्ति गीत बा जे आजो गावल-गुनल जाला. प्रस्तुत बा ओही भक्तिगीतन से कुछ गीत.   पढ़े छवो शास्त्र ओ अठारहो पुरान देखे वेदों को भी आदि से अंत तक छाना […]

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आज पुरबी के जनक महेंदर मिसिर के जन्मदिवस ह. महेंदर बाबा त हर राग अउरी मिजाज के गीत लिखले गवले बानीं. इहाँ के लिखल अनेक भक्ति गीत बा जे आजो गावल-गुनल जाला. प्रस्तुत बा ओही भक्तिगीतन से कुछ गीत.

 

पढ़े छवो शास्त्र ओ अठारहो पुरान देखे

वेदों को भी आदि से अंत तक छाना है।

तीर्थव्रत तप दान योग ध्यान ग्यान अस्नान

संध्या बंदन तर्पन का भाव सब जान है।

पढ़े शिल्प विद्या अवर ज्योतिष को भली भांति

रमल का भेद विधि पूर्वक पहिचाना है।

बैद्यक के न्यारे-न्यारे जाने हर एक अंग

नाड़ी पहचाना और नस्तर का लगाना है।

जानी है वणिज अवर व्यवहारन की रीत सभ

खोटे वअर खड़े का ग्यार उर आना है।

चाकरी के जेते सब जाने है दाँव-घात

जाना है खेत फुलवारी का जमाना है।

जाना है ढोलक मृदंग झांझ सारंगी

सहनाई सितार अ़वर तमूरे का बजाना है।

जाना है धु्रपद मल्हार देस कालिंगरा

काफी बिहाग राग सोरठ का गाना है।

जाना है बनाना रूपए अवर असरफी का

जाना है अनेक भांति कलों का घुमाना है।

इतना जिन जाना तिन खाक भी ना जाना

वो वही एक जाना जिन राम नाम जाना है

—————

खेलइत रहलीं हम सुपुली मउनियाँ

ए ननदिया मोरी है, आई गइलें डोलिया कहाँर।

बाबा मोरा रहितें रामा, भइया मोरा रहितें

ए ननदिया मोरी हे, फेरि दीहतें डोलिया कहाँर।

काँच-काँच बाँसवा के डोलिया बनवलें,

ए नदिया मोरी है लागी गइलें चारि गो कहाँर।

नाहीं मोरा लूर ढंग एको न रहनवाँ

न ननदिया मोरी लेई के चलेलें ससुरार।

कहत महेन्दर मोरा लागे नाही मनवाँ

ए ननदिया मोरी हे छूटि गइलें बाबा के दुआर।

———–

जा मुख राम नाम न आवे।

भूले हूँ जे राम जपे ना सर्प विलासत जावें।

नर कूकर सूकर सम डोलत-घर-घर पोंछ हिलावे/जामुख

धरम सनातन छोड़छाड़ के औरवें धरम सिखावे।

परहित बात करत ना कबहूँ निज स्वारथ देखलावे/जामुख

द्विज महेन्द्र विनवों का भाई विरथा जनम गँवावे।

जा मुख राम ना आवे।

————-

गोकुला नगरिया में बाजेला बधइया हाय रे सँवरियों लाल।
जनमे लें नंद के कुमार हाय रे सँवरिया लाल।
जसोदा लुटावे राम अनधन सोनवाँ हाय रे साँवरियो लाल।
नंद जी लुटावे धेनु गाय हाय रे सँवरियो लल।
बंसहा चढ़ल आवे भोला अड़भंगी हाय रे सँवरियो लाल।
ब्रह्मा जी सुनावे वेद चार हाय रे हाय रे सँवरियो लाल।
कोठा चढ़ि सुरूज झाँके अँगना में चंदा हाय रे सँवरियो लाल।
निरखे महेन्द्र इहो नंद के ललनवाँ हाय रे सँवरियो लाल।
भरि गइलें राजा के दुआर हाय रे सँवरियो लाल।

—————–

कुछो दिन नइहरा में खेलहूँ ना पवनी बारा जोरी से।

संइयाँ मांगेला गवनवाँ हो राम बाराजोरी से।

बभना निगोरा मोहे बड़ा दुख देला बराजोरी से।

उहे रे धरेला सगुनवाँ हो राम बाराजोरी से।

लाली-लाली डोलिया के सबुजी ओहरिया बाराजोरी से।

सइयाँ ले अइलें अँगनवाँ हो बाराजोरी से।

नाहीं मोरा लूर ढंग नाहीं बा गहनवाँ हो बाराजोरी से।

सइयाँ देखिहें मोर जोबनवाँ हो बाराजोरी से।

मिलि लेहु जुली लेहु संग के सहेलिया हो बाराजोरी से।

फेरू नाहीं होइहें मिलनवाँ हो बारा जोरी से।

कहत महेन्द्र कोई माने न कहनवाँ हो बाराजोरी से।

सइयाँ लेके चलले गवनवाँ हो बाराजोरी से।

———————

आहो गदाधारी नजरिया तनी फेरी,

भगत सब करेलें पुकार कर जोरी।।

लागल बाटे आस दरसन होई कब तोरी,

नजरिया तनी फेरी।।

बल के निधान हई विद्या के आगर,

हमरा के बनाई नाथ पऊआँ के चाकर,

आठो सिद्ध नवो निधि के हईं दाता,

रउए हईं माता-पिता रउए जनम दाता,

नजरिया तनी फेरी।।

सुनीले की ढेर रउरा पतितन के तारी,

हमनीं के बेरी काहे कइले बानी देरी,

द्विज महेन्द्र कहे नाथ बाटे मति थोरी,

दरसन दे दीहीं तनी कहीं कर जोरी।

नजरिया तनी फेंरी।। आहो गदाधारी।

——————-

बँसहा चढ़ल अइले शिव मतवालवा हे,
कइसे में परिछब भोला बउराहवा हे।।
अंग में विभूति डिम-डिम डमरू बजावे हे,
टक-टक ताके मोरा गौरी निहारे हे।।
कइसन बेढंगा बरवा दुअरा पर ठाढे़ हे,
दुलहा के देखि मोरा जियरा डेराला हे।।
भूत-बैताल संगे सँपवा चबाबे हे।।
अइसन बउराह बर के गउरा न देहब हे,
बलु गउरा रहिहें मोरा बारी कुँआरी हे।।
नारद के हम का ले बिगरनी हे,
समुझि-समुझि शिव हँसले अँगनव हे,
निरखे ‘महेन्द्र’ रूप कइसन बनवलें हे।।

——————–

गउरा ऐतन तपवा कइलू तू बउरहवे लागी ना।
बउरहवे लागी ना हो बउरहवे लागी ना।।
इनका दुअरवा गउरा सूपवो ना दउरा,
हो बउरवे लागी ना।।
घर ना दुअरवा गउरा भीखे के ठेकाना,
हो अलखिए लागी ना।।
कहत महेन्द्र भोला अवढर दानी हउअन,
हो त्रिभुवन के स्वामी ना।
गउरा एतना तपवा कइलू।

——————-

हर हर कर नत तरत तरन तर।

कस न दीन पर द्रवउ उमावर।

बिसम गरल धर पियत जहर कर,

चढ़त बयल पर कर डमरू धर।

अवढर ढरन सरन प्रतिपालन,

दुष्ट दलन दारून दुख हर-हर।

मुंडमालधर ब्याल गाल पर

ब्याघ्र छाल पर असन धतुरकर।

द्विज महेन्द्र पूजत हर-हर कर

बम-बम-बम शिव मम आरत हर।

—————–

सभी दिन होत न एक समान।

एक दिन राम लखन दूल्हा बने जानत सकल जहान।

एक दिन बन-बन फिरत भिखारी जागत होत बिहान।

एक दिन रावण बादशाह था चढ़ाता पुष्प विमान।

एक दिन खेपड़ी ताल बजावे लास पड़ी मैदान।

एक दिन राजा हरिश्चन्द्र को धन था मेरू समान।

एक दिन जा के बिके डोम घर पहरा देत मसान।

द्विज महेन्द्र अब चेत सबेरा क्या सोवत मैदान।

चिड़िया चूँग रही तेरी खेती फिर ना होत बिहान।

अइसन- अइसन कई गो गीतन के मोती से महेंदर बाबा के भक्ति गीत के माला सजल बा.

 

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तेजू बाबा लिहले बांसुरी ना बजावे के संकल्प, देखी अब कब बजईहन बांसुरी….? https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/why-tejpartap-said-that-now-he-will-not-play-flute-gahana-live-3208 https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/why-tejpartap-said-that-now-he-will-not-play-flute-gahana-live-3208#respond Wed, 26 Feb 2020 11:24:56 +0000 https://www.gahanalive.com/?p=3208 The post तेजू बाबा लिहले बांसुरी ना बजावे के संकल्प, देखी अब कब बजईहन बांसुरी….? appeared first on Gahana Live.

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तेजप्रताप यादव
तेजप्रताप यादव

राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता आउर लालू यादव के बड़का बेटा तेज प्रताप यादव कहले कि उ अब तबे बांसुरी बजईहे, जब उनके छोटका भाई तेजस्वी यादव बिहार के मुख्यमंत्री बनीहे. तेज प्रताप ‘बेरोजगारी हटाओ यात्रा’ रैली के संबोधित करत कहले की, ‘हर कोई पूछता है कि मैं कब बांसुरी बजाऊंगा. मैं कहना चाहता हूं कि मैं तेजस्वी के बिहार का मुख्यमंत्री बनने के बाद बांसुरी बजाऊंगा’. उ इहो कहले कि, ‘हमारे दुश्मन हमारे परिवार को बांटना करना चाहते हैं. लेकिन, हमें कोई भी बांट नहीं सकता है. वे सभी मुझे बदनाम करना चाहते हैं, क्योंकि मैं असली लालू यादव हूं.’ मालूम हो कि वैशाली में महाशिवरात्रि की पूर्व संध्या पर वैशाली में आयोजित एगो कार्यक्रम में तेजप्रताप यादव मंच से लोग के बांसुरी के धुन सुनईले रहले. साथे आरजेडी नेता भगवान कृष्ण के भाव-भंगिमा बना के लोग के  ध्यान आकर्षित कईले रहले.

मालूम हो कि ऐ साल के आखिरी में होये वाला विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आरजेडी द्वारा ‘बेरोजगारी हटाओ यात्रा’ के आयोजन कईल जा रहल बा. तेजस्वी यादव रैली के नेतृत्व करत कहले कि सूबे के हर जिला में रैली आयोजित कईल जाई. मालूम हो कि साल 2015 में भईल विधानसभा चुनाव में बीजेपी 53 सीटें जीतले रहे. जबकि,सत्तारूढ़ जेडीयू के 71 सीटें मिलल रहे. ओह समय जेडीयू महागठबंधन के हिस्सा रहे. त उहे, आरजेडी के खाता में कुल 80, कांग्रेस के 27 सीट मिलल रहे.

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भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में आइल निखार https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/a-great-revolutation-in-bhojpuri-film-industry-gahana-3200 https://www.gahanalive.com/bhojpuri-personalities/a-great-revolutation-in-bhojpuri-film-industry-gahana-3200#respond Wed, 26 Feb 2020 10:50:35 +0000 https://www.gahanalive.com/?p=3200 The post भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में आइल निखार appeared first on Gahana Live.

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भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री साठ के दशक से लेके आज ले लगातार भोजपुरी फिल्म के निर्माण कर रहल बा। हालांकी पहिले के अपेक्षा भोजपुरिया सिनेमा के विकास में अब कुछ साल से अधिक बढोत्तरी भईल बा।

एगो वक्‍त रहे जब भोजपुरी सिनेमा के बारे में इ आम धारणा रहे कि हीरो के बदौलत ही इंडस्‍ट्री चल रहल बा। तब अइसन में इंडस्‍ट्री में हीरो के ज्‍यादा तरजीह मिलत रहे। ओह समय में सिनेमा के बाकी कलाकार लोग के ना त सम्‍मान मिलत रहे अउर ना ही दाम। ओह समय में निर्माता–निर्देशक के लागता रहे कि फिल्‍म त हिरो ही हिट करइहे। अउर जादे कुछु भईल त दुअर्थी संवाद फिल्‍म के नइया पार लगा दी। बाकी एह सबके चलते भोजपुरी सिनेमा के स्‍तर लगातार गिरत गइल अउर तकनीक के एह युग में दर्शक बॉलीवुड अउर दुसर इंडस्‍ट्री के सिनेमा के ओर देखे लागल।

अवधेश मिश्रा
अवधेश मिश्रा

भोजपुरी बॉक्‍स ऑफिस पर अइसन निराशा के घड़ी में साल 2017 में एगो फिल्‍म आइल ‘मेंहदी लगा के रखना’। इ ओही फिल्‍म बा, जेकरा देखके दर्शक लोग के लागल कि एह फिल्‍म में सभे कलाकार के भूमिका महत्‍वपूर्ण बा। हीरो से जादे एह सिनेमा में चरित्र अभिनेता फ्रंट फुट पर नजर अइलें।

एकर श्रेय भोजपुरी में अबले विलेन के किरदार में नजर आवे वाला अभिनेता अवधेश मिश्रा के जाला। उहां के एह फिल्‍म से एगो अइसन परंपरा के शुरुआत कर दीहनीं, जहवां हीरो से जादे चरित्र अभिनेता के तरजीह मिले शुरू हो गईल। जेकरा बाद डमरू, संघर्ष, विवाह जइसन कईठे फिल्‍म कथानक प्रधान फिल्‍म के ट्रेंड सेट कर दिहलस। संयोग से इ सभे फिल्‍म में अवधेश मिश्रा भी नजर अइलें। आज कथानक के प्रधानता वाली तमाम बड़हन सिनेमा में अवधेश मिश्रा नजर आवेलन। एकरे अलावा सुशील सिंह, संजय पांडेय, देव सिंह, रोहित सिंह मटरू जइसन कईठे कलाकार के इंडस्‍ट्री में पूछ बढ़ गई। अवधेश मिश्रा के पहिले खलनायक लोग के कवनों पहचान ना रहे।

आज इंडस्‍ट्री परफॉर्मेंस बेस्‍ड सिनेमा पर टिक गईल बा। पहिले जइसे हीरो ले ल अउर सिनेमा बन जात रहे। बाकी अब अइसन नइखे। आज-काल 90 प्रतिशत फिल्‍म कथानक प्रधान बने लागल बा, जेकर सराहना बड़ पैमाना पर भी हो रहल बा। अइसन सिनेमा से हताश हो चुकल कलाकार के नाम, पहचान अउर काम मिले लागल। ओहन लोग के अब उचित सम्‍मान अउर दाम भी मिल रहल बा। कुछ प्रतिशत लोग आजहूं हीरो में चिपकल बाड़न। बाकी दर्शक लोग कथानक प्रधान फिल्‍म के पसंद करे शुरू कर दिहलें बाड़न। चरित्र अभिनेता लोग के अहमियत बढ़ला के बाद एगो अच्‍छा बात इ भइल बा कि भोजपुरी इंडस्‍ट्री के इ चरित्र अभिनेता लोग के दूसर इंडस्ट्री में भी अच्‍छा काम मिले लागल बा, बाकी आज ले कवनों हीरो के पूछ दूसर जगह पर नईखे भईल। अब भोजपुरी इंडस्‍ट्री भी परिपक्‍व अभिनेता लोग के हो गईल बा, काहे कि दर्शक लोग के भी बासी चावल के तड़का लगाके खाना पसंद नइखे। अवधेश मिश्रा के ही एगो फिल्‍म आ रहल बा– ‘दोस्‍ताना’, जेकरा लेके अभी बहुत चर्चा हो रहल बा।

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पूर्वांचल के बाहुबलियों का टशन https://www.gahanalive.com/bhojpuri-cinema-and-tv-news/passion-of-gangasters-from-purvanchal-gahana-live-3159 https://www.gahanalive.com/bhojpuri-cinema-and-tv-news/passion-of-gangasters-from-purvanchal-gahana-live-3159#respond Tue, 25 Feb 2020 12:42:06 +0000 https://www.gahanalive.com/?p=3159 The post पूर्वांचल के बाहुबलियों का टशन appeared first on Gahana Live.

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पोस्टर (मिर्जापुर)
पोस्टर (मिर्जापुर)

अमेजन की वेब सीरिज  मिर्ज़ापुर एक बार फिर चर्चा में है इसका सीज़न-2 का ट्रेलर भी आ गया है ..सीजन 1 में पंकज त्रिपाठी, अली फजल, दिव्येंदु शर्मा, श्वेता त्रिपाठी, विक्रांत मैसी के दमदार अभिनय ने काफी लोगों को आकर्षित किया लेकिन क्या वजह है कि अपराध या माफिया की जब भी बात होती है पूर्वांचल सबसे हावी रहा है वजह है यहाँ से जुड़ा माफियों का इतिहास और युवा पीढ़ी का बाहुबलियों के प्रति बढ़ता झुकाव… जो लोगों को हमेशा अपनी ओर खींचता है इसकी एक वजह और भी है राजनीति में बढ़ता बहुबलियों का प्रभाव और रसूख भी इन माफियाओं के पनपने और उठने में मदद करता है ..यूँ ही नहीं छोटे से गाँव में रहने वाला युवा पढ़ाई- लिखाई छोड़कर अपराध की ओर बढ़ जाता है उसके अंदर का विरोध और बाहुबलियों का बढ़ता टशन इनके अंदर घर कर लेता है और युवा बिना सोचे – समझे धीरे –धीरे अपराध की दुनिया में प्रवेश कर जाता है

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल से कई ऐसे बाहुबली निकलकर आए, जिनके नाम का सिक्का लंबे समय तक चलता रहा कई बाहुबली  सत्ता से सीधे तौर पर जुड़े और ताकतवर बनकर उभरे जिन्होंने पूर्वांचल में पुलिस की नाक में भी दम कर के रख दिया लोग उनके नाम से  भी थर्राते थे …जुर्म की दुनिया हो या राजनीति के गलियारे या फिर कोई बड़ा  ठेके का कारोबार, हर जगह बाहुबली माफियाओं दखल रहा है. पूर्वांचल के कुछ ऐसे ही कुख्यात माफियाओं और गैंगस्टरस जो कभी अपराध की दुनिया के बादशाह कहे जाते थे हालांकि उनका अन्त पुलिस की गोली से ही हुआ लेकिन जब तक जिये लोगों की रूह काँपती थी ऐसे बाहुबलियों से …

श्रीप्रकाश शुक्ला

श्रीप्रकाश शुक्ला अपराध की दुनिया का वो नाम जो वीरेंद्र शाही की हत्या के बाद चर्चा में आया जिसकी जड़े भी पूर्वांचल के गोरखपुर से जुड़ी थी गोरखपुर के मामखोर गांव में  जन्म हुआ जुर्म की दुनिया के इस बादशाह का….पिता पेशे से एक साधारण  शिक्षक रहे और बेटा था गांव का मशहूर पहलवान…1993 का वो साल जिसमें श्रीप्रकाश शुक्ला ने जुर्म की दुनिया में पहला कदम रखा । उसने अपनी बहन को देखकर सीटी बजाने वाले राकेश तिवारी की हत्या कर दी …20 साल का श्रीप्रकाश जिसके खून में लोगों के लिये नफरत और उबाल था और इसी हत्या के साथ वो जुर्म की दुनिया में आगे बढ़ता चला गया.. गांव में मर्डर करने के बाद श्रीप्रकाश देश छोड़कर बैंकॉक भाग गया. जब वह लौटा तो एक शिक्षक बाप का सीधा साधा बेटा नहीं बलिक् अपराध की दुनिया में उभरता वो नाम था जिससे लोग डरते थे उसने अपना रसूख बढ़ाने के लिये बिहार के सूरजभान गैंग को ज्वायन कर लिया । शुक्ला अब जुर्म की दुनिया में नाम कमा रहा था. तभी उसने अपने वर्चस्व को बढ़ाने के लिये  हरि शंकर तिवारी के इशारे पर 1997 में राजनेता और कुख्यात अपराधी वीरेन्द्र शाही की हत्या कर दी और इसी के साथ अपराध जगत में  उसकी तूती बोलने लगी … एक-एक करके न जाने कितनी हत्या, अपहरण, अवैध वसूली और धमकी के मामले श्रीप्रकाश शुक्ला के नाम लिखे जाने लगे । उसका नाम उसकी पहचान से भी बड़ा बन गया था । पुलिस के पास उसका नाम पता तो  था  पर नहीं था तो उसकी तस्वीर जिससे उसे पहचाना जा सके … पूरब से लेकर पश्चिम तक रेलवे के ठेके पर एकछत्र राज, व्यापारियों से उगाही, किडनैपिंग, कत्ल, डकैती जो उसे बाहुबली बनने का तमगा देते जा रहे थे अब वो आम आदमी नहीं थी एक ऐसा माफिया जो पुलिस की निगाह में भी खटक रहा था  उसके रास्ते में जो भी आया उसने उसे मारने में जरा भी देरी नहीं की। पूरा पूर्वांचल उससे खौफज़दा था  लिहाजा लोग तो लोग पुलिस भी उससे डरती थी लेकिन उसका अंत वही था जो हर अपराधी का होता है …उसे गाजियाबाद  में एसटीएफ ने मार गिराया और इसी के साथ वो जुर्म की दुनिया का इतिहास बन गया.

श्री प्रकाश शुक्ला
श्री प्रकाश शुक्ला

 

मुख्तार अंसारी

जरायन की दुनिया का वो बाहुबली  जो राजनीति में आने के बाद पूर्वांचल का रॉबिनहुड बन गया लेकिन इस रॉबिनहुड की कहानी भी जुर्म की दुनिया से ही शुरू होती है । उस बाहुबली नेता का नाम है मुख्तार अंसारी…. प्रदेश के माफिया नेताओं में मुख्तार अंसारी का नाम पहले पायदान पर है। यूपी के गाजीपुर जिले में जन्मा मुखातार किशोरवस्था से ही निडर और दबंग था और छात्र राजनीति में  भी सक्रीय था । विकास को लेकर पूर्वांचल  में जब कई योजनाओं ने जोर पकड़ा  तब जमीन कब्जा  करने की राजनीति शुरू हुयी  जिसको लेकर  दो गैंग बन गए । मुख्तार अंसारी के सामने साहिब सिंह गैंग के ब्रजेश सिंह ने अपना अलग गैंग बनाया और इसी के साथ  ब्रजेश सिंह के साथ मुख्तार की दुश्मनी हो गई । छात्र राजनीति के बाद ज़मीनी कारोबार और ठेकों को पाने की लड़ाई और उस पर अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिये इन्होनें अपराध की दुनिया में कदम रखा । पूर्वांचल के कई जगहों जैसे मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर में उनके नाम की तूती बोलने लगी …..और इसी के साथ  2002 में  दोनों गैंग पूर्वांचल के सबसे बड़े  माफिया गिरोह बन गए ।  एक दिन ब्रजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी के काफिले पर हमला कराया जिसमें मुख्तार के तीन लोग मारे गए और ब्रजेश सिंह इस हमले में घायल हो गया ..उसके मारे जाने की अफवाह थी. इस घटना के बाद मुख्तार अंसारी पूर्वांचल के बाहुबली के रूप में शुमार होने लगा और इसके बाद उसने राजनीति में कदम रखा और चौथी बार विधायक बना…

मुख़्तार अंसारी
मुख़्तार अंसारी

मुन्ना बजरंगी

यूपी के कुख्यात माफिया  में प्रेम प्रकाश उर्फ मुन्ना बजरंगी  भी जुर्म की दुनिया का वो नाम जिसकी दहशत ने लोगों को हिला कर रख दिया था । उसका जन्म 1967 में यूपी के जौनपुर जिले के पूरेदयाल गांव में हुआ ।  बचपन से ही उसका झुकाव जुर्म की दुनिया की तरफ था लिहाजा उसने 5वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी और जैसे ही वो किशोरावस्था में आया उसने जुर्म की दुनिया में अपना  पहला कदम रखा । बचपन से ही वह एक बड़ा गैंगेस्टर बनना चाहता था … उसे हथियार रखने का बड़ा शौक था।  उसे जौनपुर में स्थानीय दबंग माफिया गजराज सिंह का संरक्षण मिला हुआ था । 1984 में मुन्ना तब चर्चा में आया जब उसने  लूट के लिए एक व्यापारी की हत्या तक कर दी। फिर जौनपुर के भाजपा नेता रामचंद्र सिंह का कत्ल कर वो लोगों की आँखों में चढ़ गया और 90 के दशक में उसे साथ मिला  बाहुबली माफिया और राजनेता मुख्तार अंसारी का जिसके बाद मुन्ना उसके गैंग में शामिल हो गया। वो सरकारी ठेकों को हथियाने के लिये अपना प्रभाव बढ़ाने लगा  लेकिन उसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा बना बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय ….अपने रास्ते के काँटे को हटाने के लिये मुन्ना ने मुख्तार के कहने पर 29 नवंबर 2005 को कृष्णानंद राय को गोलियों से भून डाला  जिससे पूरा पूर्वांचल दहशत में आ गया  हालांकि पिछले कई साल से वह जेल में बंद था और जब उसे कोर्ट में पेशी के लिए झांसी से बागपत लाया जा रहा था तो जेल के अंदर ही उसकी गोली मार कर हत्या कर दी गई।

मुन्ना बजरंगी
मुन्ना बजरंगी

सुभाष ठाकुर

अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद के बनने में अगर सबसे बड़ा नाम है तो वो नाम है सुभाष ठाकुर का । ऐसा कहा जाता है कि सुभाष एक ऐसा गैंगस्टर है, जिसके गैंग में रहकर ही दाऊद इब्राहिम ने जुर्म का सबक सीखा था। उसके बाद ही दाऊद अंडरवर्ल्ड डॉन बना।  बाद में उसकी दाऊद से दुश्मनी हो गई।  ठाकुर ने  बनारस कोर्ट में याचिका दायर कर दाऊद से खुद  को खतरा बताते हुए बुलेट प्रूफ जैकेट और सिक्यूरिटी की मांग की थी हालांकि उसके खिलाफ हत्या, फिरौती, रंगदारी, और लूट जैसे कई संगीन मुकदमें चल रहे हैं। उसे पूर्वांचल का कुख्यात गैंगस्टर माना जाता है। हाल के दिनों में उसे डॉन छोटा राजन का साथ मिल गया है। ऐसा कहा जाता है कि  अब ये दोनों मिलकर भारत के मोस्ट वॉन्टेड डॉन दाऊद इब्राहिम के खिलाफ साजिश रच रहे हैं। बताया जाता है कि माफिया सरगना सुभाष ठाकुर जेल से  ही अपना गैंग ऑपरेट कर रहा है। उसे यूपी की फतेहगढ़ सेंट्रल जेल से मुंबई जेल शिफ्ट कर दिया गया हालांकि वह मुंबई नहीं जाना चाहता था।  सुभाष पिछले कई सालों से यूपी की जेल में बंद था।

सुबास ठाकुर
सुबास ठाकुर

 

हरिशंकर तिवारी

पूर्वांचल में राजनीति का अपराधीकरण गोरखपुर से शुरू करने का श्रेय जाता है तो वह है हरिशंकर तिवारी …. एक ज़माने में पूर्वांचल की राजनीति में तिवारी की तूती बोलती थी। रेलवे से लेकर पीडब्लूडी की ठेकेदारी में हरिशंकर तिवारी का ही कब्ज़ा था। उसके दम पर तिवारी ने  राजनीति में भी अपना रसूख बढ़ा लिया वो जेल में रहकर चुनाव जीतने वाले वह पहले नेता था जो ब्राह्मण बिरादरी का भी नेता माना जाने लगा ।

हरी शंकर तिवारी
हरी शंकर तिवारी

बृजेश सिंह

वाराणसी में जन्म हुआ बृजेश सिंह उर्फ अरुण कुमार का जिसके पिता रविन्द्र सिंह इलाके के रसूखदार लोगों में से एक थे।  बृजेश सिंह बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में काफी तेज़ था यही वजह थी कि  1984 में इंटर की परीक्षा में उसने अच्छे अंक हासिल किए थे।  उसके बाद बृजेश ने यूपी कॉलेज से बीएससी की पढाई की। वहां भी वह मेधावी  छात्रों की श्रेणी में आता था।  27 अगस्त 1984 को वाराणसी के धरहरा गांव में बृजेश के पिता रविन्द्र सिंह की हत्या कर दी गई। उनके सियासी विरोधी हरिहर सिंह और पांचू सिंह ने साथियों के साथ मिलकर  उनकी हत्या को अंजाम दिया  और इसी के साथ पिता की मौत ने बृजेश सिंह के मन में बदले की भावना को जन्म दे दिया।  राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई  और बदले की  भावना के चलते  होनहार बृजेश ने जाने अनजाने में अपराध की दुनिया में अपना कदम बढ़ा दिया और अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिये उसने अपने पिता के पांच हत्यारों को मौत की नींद सुला दिया लेकिन  जब उसका सामना मुख्तार अंसारी से हुआ तो उसकी दुश्मनी उसे काफी महंगी पड़ी।  जिसका खामियाज़ा भुगता उसके चचेरे भाई सतीश सिंह  ने जिसकी  दिन दहाड़े हत्या कर दी गई और इस वारदात ने पूरे पूर्वांचल को दहला कर रख दिया ।

ब्रिजेश सिंह
ब्रिजेश सिंह

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